For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मेरा मन माली सा हो गया

टूट टूट के अपना दिल कुछ जाली सा हो गया

अंतरमन का वो कोना कुछ खाली सा हो गया

 

वस्ल की निगाहें हो गयी, दोस्ती की आड़ में

नारी होकर जीना अब कुछ गाली सा हो गया

 

नजरों में घुली शराब, चाचा मामा भाई की

आँखों में हर रिश्ता, अब कुछ साली सा हो गया

 

गर्दिश में लिपटी कनीज़, सहारे की तलाश में

मन अकबर शज़र का भी, कुछ डाली सा हो गया

 

शोर में दब के रह गयी आबरू की आवाज

चीखती ललना का स्वर, बस ताली सा हो गया

 

हारकर जब उसने सर रखा था मेरे काँधे पर 

कैसे बताऊँ “निधि” मेरा मन माली सा हो गया 

निधि अग्रवाल 

मौलिक और अप्रकाशित 

Views: 649

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 13, 2015 at 11:43pm

आ० निधि ज़ी सर्वप्रथम इस बेहतरीन रचना पर हार्दिक बधाई,आप के ख्यालात बहुत ही साफ है,मतलब उधेड़बुन नही है,आप सटीक लिखती है,आप की रचनाओं में ताजगी का यही मूल है,बहर में लिखने का प्रयास ज़ारी रक्खें मै ये अवश्य कहना चाहूँगा आगे आपकी मर्जी सादर !

Comment by kanta roy on June 11, 2015 at 10:35pm
नारी मन को इतने सुंदर शेरों में व्यक्त करना आज शायद पहली बार ही पढा है मैने । सच ही कहा है और बेमिसाल ही कह गई आप आदरणीया निधि अग्रवाल जी .......अब तो मेरा मन भी पढकर इसे माली सा हो गया ।
Comment by shree suneel on June 11, 2015 at 11:36am
हारकर जब उसने सर रखा था मेरे काँधे पर
कैसे बताऊँ “निधि” मेरा मन माली सा हो गया..
अच्छी प्रस्तुति आदरणीया निधि जी. बधाई आपको.
Comment by narendrasinh chauhan on June 10, 2015 at 2:44pm

बहोत खूब भाव पूर्ण रचना

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 10, 2015 at 12:57pm

अच्छी गजल है , बेहतरीन . सुन्दर . अखरा तो केवल यह-

हर रिश्ता अब कहीं न कहीं, कुछ नाली सा हो गया

 

Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on June 10, 2015 at 12:07pm
आदरणीया निधि अग्रवाल जी भावपक्ष बहुत ही उम्दा है "कुछ नाली" सा हो गया वाक्य विन्यास की दृष्टि से थोड़ा अखरता है "सारा रिश्ता ही कुछ कुछ नाली सा हो गया ज्यादा बेहतर होगा देख लें इस उम्दा रचना के लिये बधाई आपको।
Comment by Nidhi Agrawal on June 10, 2015 at 11:13am

आदरणीय वीनस जी .. मुझे बह्र में लिखना नहीं आता .. बनता ही नहीं 

जब भी बह्र में लिखने की कोशिश की .. रचना के भाव बदल गए.. इसलिए जब भी रचना का भावपक्ष सशक्त होता है मैं पद के वज्न का ख्याल रखने की कोशिश करती हूँ .. बहुत कम बार मैं किसी बहर में लिख पायी .. इसलिए अगर रचना पढ़ कर बहर पहचान न पाने की शिकायत है तो माफ़ करें क्योंकि मैंने कोई बहर पकड़ कर नहीं लिखा है वीनस जी

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on June 10, 2015 at 10:36am

स्ल की निगाहें हो गयी, दोस्ती की आड़ में

नारी होकर जीना अब कुछ गाली सा हो गया

 

नजरों में घुली शराब, चाचा मामा भाई की

हर रिश्ता अब कहीं न कहीं, कुछ नाली सा हो गया...

बहुत ही खूबसूरत और भावपूर्ण....

रचना के लिए सादर बधाई स्वीकार करे आदरणीय निधि अग्रवाल जी 

 

Comment by वीनस केसरी on June 10, 2015 at 1:24am

शोर में दब के रह गयी आबरू की आवाज

चीखती ललना का स्वर, बस ताली सा हो गया

वाह बहुत खूब

रुक्न या मात्रा लिख दिया करें तो बहर समझने में आसानी हो जाती है
सादर

Comment by somesh kumar on June 9, 2015 at 11:06pm

पूरे पुरुषीय समाज की मानसिकता को उधेड़ कर रख दिया ,निधि जी ,बधाई |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
7 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
8 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
8 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Monday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service