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पगली बदली चाँद को ही खा गयी

2122 2122 212

चाँदनी बदली को इतना भा गयी 

पगली बदली चाँद को ही खा गयी 

जिसको रोता देख हमने की मदद

वो ही बिपदा बन मेरे सर आ गयी 

हक़ की मैंने की यहाँ है बात जब 

गोली इक बन्दूक की दहला गयी 

जिस घड़ी लव पे हँसी आयी मेरे 

वो उसी पल अश्क से नहला गयी 

जान से मारा मगर जब बच गया 

आ मेरे घावों को वो सहला गयी 

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 28, 2015 at 2:38am

इस ग़ज़ल प्रस्तुति के लिए धन्यवाद आदरणीय.

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 27, 2015 at 3:01pm

आदरणीय मिथिलेश जी रचना पर आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए ढेर सारी बधाई सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 27, 2015 at 3:00pm

आदरणीय गिरिराज भाईसाब ..हौसला अफजाई के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 27, 2015 at 2:59pm

आदरणीया कांता जी रचना पर आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 25, 2015 at 12:49am

आदरनीय आशुतोष भाई , बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है ,  दिली मुबारक बाद स्वीकार करें ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 24, 2015 at 11:21pm

आदरणीय आशुतोष जी इस खुबसूरत ग़ज़ल के लिए शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं 

Comment by shree suneel on May 24, 2015 at 10:25pm
आदरणीय आशुतोष जी अच्छी ग़ज़ल हुई है. हार्दिक शुभकामनाएं.
Comment by kanta roy on May 24, 2015 at 12:44pm
बेहद सुंदर भाव में आपने यह रचना रचि है चाँदनी का भा जाना बदली को ..... अति सुंदर बधाई आदरणीय डा. आशुतोष मिश्रा जी इस शानदार रचना के लिये
Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 24, 2015 at 11:47am

आदरणीय केवल भाई जी .आप सबके स्नेह और प्रतिक्रियाओं से सतत कुछ न कुछ लिखने की प्रेरणा मिलती रहती है ..हार्दिक धन्यवाद के साथ सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 24, 2015 at 11:46am

आदरणीय मनोज जी रचना पर आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर 

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