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" हेलो , पापा , आप समय से अपनी दवा खा लेना "| बेटी के शब्द सुनकर उन्होंने सुकून की सांस ली | अभी कल ही उसने फोन नहीं किया तो एकदम परेशान हो गए और वापस आते ही पूरा लेक्चर दे डाला |
आज भी हड़बड़ी में वो भूल ही गयी थी पर एक बुज़ुर्ग को सामने देखते ही याद आ गया | पता तो उसको भी है और पापा को भी है , फोन तो सिर्फ बहाना है ये बताने के लिए कि आज भी वो सकुशल पहुँच गयी है |
मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by विनय कुमार on May 19, 2015 at 12:26am

बहुत बहुत आभार आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी , धन्यवाद..

Comment by विनय कुमार on May 19, 2015 at 12:25am

बहुत बहुत आभार आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी , धन्यवाद इतने सुन्दर कमेंट के लिए..

Comment by विनय कुमार on May 19, 2015 at 12:24am

बहुत बहुत आभार आदरणीय वीर मेहता जी , आपके कमेंट्स बहुत हिम्मत बढ़ाते हैं..

Comment by विनय कुमार on May 19, 2015 at 12:23am

बहुत बहुत आभार आदरणीय  जितेन्द्र पस्टारिया जी , आपके अच्छे कमेंट्स हमेशा हौसला बढ़ाते हैं

Comment by विनय कुमार on May 19, 2015 at 12:21am

बहुत बहुत आभार आदरणीय श्याम नारायण शर्मा जी..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 18, 2015 at 11:04pm

बेहतरीन लघुकथा 

बधाई इस प्रस्तुति पर 

Comment by Hari Prakash Dubey on May 18, 2015 at 10:35pm

"पता तो उसको भी है और पापा को भी है , फोन तो सिर्फ बहाना है ये बताने के लिए कि आज भी वो सकुशल पहुँच गयी है | "

आ. विनय  सर   ये  पंक्तियाँ  सब  कुछ  कह  डालतीं हैं एक  पल में , इस सुन्दर रचना  पर  बधाई  !  सादर   

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on May 18, 2015 at 5:24pm

बहुत सुन्दर रचना ... आदरणीय विनय कुमार जी.. 

सच है अपनों के लिए चिंता और आपसी मोह के बंधन आपस में एक दुसरे के पर्याय है . सादर बधाई स्वीकार करे.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 18, 2015 at 10:24am

बहुत खूब, आदरणीय विनय जी. बड़ी सुंदर लघुकथा, सच! अपनों के सुरक्षित लौट आने की खबर ही बड़ी ठंडक सी दे जाती है मन को.

Comment by Shyam Narain Verma on May 18, 2015 at 10:04am
बहुत खूब ॥ आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

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