For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

शक्ति छंद (नेपाल भूकंप )

  

अभी फूल पूरे खिले भी न थे

नई जिंदगी से मिले भी न थे

चली बेरहम वक़्त की आरियाँ

कटे शीश धड़ से मिटी क्यारियाँ

 

कहर बन फटी थरथराती जमी

जहाँ सांस आई वहीँ पे थमी

दिखाई अजब काल ने क्रूरता

फिरा क्रुद्ध यमराज यूँ घूरता

 

निवाले कई काल के हैं बने

दबे हर जगह जिस्म खूँ से सने

बचा जो यहाँ ढूँढता आसरा

सहारा बना एक का दूसरा

 

बचे काल से एक भाई बहन

सिसकते हुए घाव खाए गहन

हुए मूल से देख  महरूम ये

लिपटते हुए आज  मासूम ये

 

न माँ का पता ना पिता का पता

नहीं सोच पाए हुई क्या खता

कहर कुदरती बाढ़ क्या जलजला

कहाँ उम्र ये सोचने की भला

 (मौलिक एवं अप्रकाशित)

 

Views: 718

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 18, 2015 at 1:05pm

सही तो है. यों, मुझे ऐसा लगता है कि दोनों पंक्तियों को आपस में बदल लेना श्रेयस्कर होगा. यथा --

रुकी  सांस नजरें  वहीँ पे थमीं

कहर बन फटी थरथराती जमीं

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 18, 2015 at 12:37pm

आ० सौरभ जी,आपके संशय का निवारण इस तरह करना चाह रही हूँ क्या सही रहेगा? कृपया बताएं 

कहर बन फटी थरथराती जमीं

रुकी  सांस नजरें  वहीँ पे थमीं 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 18, 2015 at 12:28pm

आ० हरि प्रकाश जी ,शक्ति छंद पर यह प्रस्तुति आपको पसंद आई बहुत- बहुत आभार आपका  मेरा लिखना सार्थक हुआ |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 18, 2015 at 12:26pm

प्रिय तनूजा जी,आपका हृदय से आभार | 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 18, 2015 at 12:25pm

कृष्णा मिश्र भैया ,आपको प्रस्तुति पसंद आई मेरा लिखना सफल हुआ दिल से आभारी हूँ .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 18, 2015 at 12:24pm

मिथिलेश भैया ,आपकी प्रतिक्रिया से अभिभूत हूँ आपको रचना पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ .विषय ही ऐसा है जिसपर लिखना पढना भावुक कर ही देगा |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 18, 2015 at 12:22pm

आ० निर्मल नदीम जी ,इस होंसलाफ्जाई का तहे दिल से शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 18, 2015 at 12:21pm

केवल प्रसाद भैया ,आपके इस उत्साह वर्धन के लिए दिल से आभारी हूँ लिखना सफल हुआ |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 18, 2015 at 12:19pm

आ० श्याम नारायण वर्मा जी ,आपका प्रभूत आभार |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 18, 2015 at 12:18pm

आ० सौरभ जी ,प्रतिक्रिया पर उत्तर देने में विलम्ब हुआ खेद है आज ही कोलाबा पंहुची हूँ तथा लेपटोप उपलब्ध हो पाया है तब आकर सभी को पढ़ रही हूँ आपको ये छंद पसंद आये मेरा लिखना सफल हुआ आपकी इस छंदात्मक प्रतिक्रिया हेतु दिल से बहुत बहुत आभारी हूँ आपके  परामर्श का हृदय से स्वागत है इसका निवारण भी सोचूंगी बहुत- बहुत शुक्रिया सादर. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"स्वागतम"
35 minutes ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
36 minutes ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ.आ आ. भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर.आपकी ग़ज़ल के मतला का ऊला, बेबह्र है, देखिएगा !"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service