For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

उसकी सासें गातीं हैं सरगम
अौर रात रक़्स करती है/
मैं चाँद की डफली बजाता हूँ,
मगर ये गीत जाने कौन गाता है!

हमने चाँद को चिकुटी काटी /
शरारत सूझी/
उसे प्यार आया, फिर सहलाया /
और,
दे गया चाँदनी रात भर के लिये.

उसे चाँद दे दिया
और ख़ुद चाँदनी ले ली.
ठग लिया यूँ आसमाँ को आज हमने.
सुना है,
आसमां सितारों से शिकायत करता है.

रात की मिट्टी में,
तेरी यादों की एक डाली रोपी
जज्बात से सींचा उसे,
फिर,
एक फूल खिला चाँद सा उसमें,
और,
तर हो गया मैं, तेरे बदन की गंध से.

सितारों के झूमर और दूज के चाँद का छल्ला
बू-ए-यास्मीन का आँचल,
और बदन चाँदनी से लीपा
देखो!
रात की दुल्हन दरीचे का
पल्ला हिलाती है.

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 735

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by shree suneel on May 2, 2015 at 5:56pm
धन्यवाद आदरणीय वीनस केसरी सर..
Comment by shree suneel on May 2, 2015 at 5:52pm
आदरणीय सौरभ पांडे सर, आपकी महत्वपूर्ण टिप्पणी को आत्मसात करने की कोशिश कर रहा हूँ.
आपके प्रति इस मन में श्रद्धा है आदरणीय. मन व्याकुल हुआ ये जानकर कि आप असहज महसूस किये. क्षमा चाहूंगा सर.
मार्गदर्शन का आकांक्षी--
Comment by वीनस केसरी on May 2, 2015 at 3:59pm

आज जब नस्री नज़्म की दुनिया सिकुड़ती जा रही है ऐसे में इस नज़्म से रू-ब-रू होना अच्छा लगा ...
बहुत खूब


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 2, 2015 at 3:45pm

भाईजी, आप स्पष्ट दृष्टि और संतुलित मनस के मालिक हैं. सादर आभार.
यह अवश्य है, कि आपकी पिछली प्रतिक्रिया से हम तनिक असहज अवश्य हो गये थे.

वस्तुतः रचनाकर्म एक गंभीर प्रयास है, आदरणीय. यह आत्मसुख का कारण होते हुए भी अंतर्प्रवाह के तौर पर जनोन्मुखी हुआ करता है. इस हिसाब से यह एक गहन ताप है जिसे सचेत रचनाकार को सहना ही पड़ता है.

एक बात और, भले ही रचनाओं का प्रयास सांकेतिक अथवा सुसुप्त सा प्रतीत हो, किन्तु रचनाएँ वस्तुतः समाज का भविष्य नियत करती हैं. इस आधार पर ये सामाजिक परिपाटियों का वहन करती हुई भी समाज के भविष्य को खोलने का काम करती हैं. अर्थात हर गंभीर रचना अपने समय से आगे-आगे चलती है. तथा, जन और पाठक इसके पीछे-पीछे चलते हैं.

वहीं रचनाएँ जब शाब्दिक कौतुक और भावकेलि का कारण मात्र रह जायें, तो अभिजात्य वृत्तियों के लिए मनोरंजन का साधन भर हो कर रह जाती हैं. तब ये समाज के एक सीमित किन्तु प्रभावी वर्ग की अनुगामिनी हो जाती हैं. रचनाओं का मात्र मनसरंजन और उसके लिए साधन बन जाना वैयक्तिक साहित्यकर्म में आये पतन का उद्घोष है. इस उद्घोष के पूर्व ही एक सचेत रचनाकार को संयत हो जाना चाहिये. प्रयास के स्तर पर वह चाहे जैसा अभ्यासी क्यों न हो, चाहे जैसे शब्द कौतुक क्यों न करता हो.
पिछली टिप्पणी में मेरा संकेत इसी ओर था, आदरणीय
सादर

Comment by shree suneel on May 2, 2015 at 2:38pm
आदरणीय सौरभ पांडे सर, सच तो ये है कि अपनी हर रचना पर आपकी टिप्पणी की प्रतीक्षा रहती है.
"यदि इस मंच पर आपको केवल ’वाह-वाही’ की अपेक्षा है तो"

आदरणीय, ऐसी अपेक्षा तो बिल्कुल नहीं है. नया हूँ. मुझे पता है, इसके नुकसान बङे गम्भीर होते हैं.

"रचनाकारों की बनिस्पत रचनाओं का सम्मान होता है... कि ऐसे मंच बहुत नहीं हैं. "

मैं आपसे सहमत हूँ आदरणीय. मैं स्वयं ऋणी हूँ इस मंच का. मेरे कई पुराने प्रश्नों के हल आप और आप जैसे गुणीजनो के द्वारा प्राप्त हो सके.
शायद मैं स्वयं को स्पष्ट कर सका. आशा है आपका स्नेह प्राप्त होता रहेगा. सादर

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 2, 2015 at 11:39am

आप अन्यथा न लें, भाई श्री सुनीलजी, सभी रचनाकार एक दौर में ऐसी रचनाओं पर प्रयास करते हैं. साहित्य में ही एक समय ऐसा भी था जब इस तासीर की रचनाओं का बाहुल्य था.  तभी मैंने कहा न आदरणीय - आज माहौल बहुत बदल गया है

आप मेरे कहे को अन्यथा न ले कर ’मीमांसा’ की आत्मीयता को समझें.

दूसरे, यदि इस मंच पर आपको केवल ’वाह-वाही’ की अपेक्षा है तो ऐसी परेशानी आपको अकसर होगी. आप इस मंच के सक्रिय सदस्य हैं, हम आपकी उपस्थिति का सम्मान करते हैं.

साथ ही, एक बात आप अवश्य जानें आदरणीय, कि यह उन मंचों में से हैं जहाँ रचनाकारों की बनिस्पत रचनाओं का सम्मान होता है. और, आपको भी भान होगा आदरणीय, कि ऐसे मंच बहुत नहीं हैं. 

सादर

Comment by shree suneel on May 2, 2015 at 11:06am
प्रशंसात्मक टिप्पणी के लिए धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण रामानुज जी. सादर
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 2, 2015 at 10:58am

बहुत बढियां अंदाज लेखन का | हार्दिक बधाई 

Comment by shree suneel on May 2, 2015 at 10:54am
आदरणीय सौरभ पांडे सर, रचना पे आप आये, इसमें कुछ बेहतर दिखा आपको इसके लिए धन्यवाद.
दरअस्ल, ये अलग अलग वक़्त में की गई पांच छोटी छोटी रचनायें हैं और मेरी प्रिय हैं.
अन्य एेसी रचनाओं का भी प्रशंसक हूँ.
उपस्थिति के लिए पुनः धन्यवाद सर.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 2, 2015 at 2:28am

इस कविता में जिस मुखर अंदाज़ में रुमानियत इन्फ़्यूज्ड है वह पुलकित कर रहा है.

वैसे इस तरह की कविताएँ क्षणिक सुख ही दे पाती हैं. क्योंकि शाब्दिक कौतुक के सापेक्ष आज माहौल बहुत बदल गया है.

आदरणीय श्री सुनीलजी, आपको इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक शुभकामनाएँ.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
9 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Jul 29

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Jul 29

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Jul 29
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Jul 27

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service