For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल :- कहीं थे बाज़ू कहीं बदन था

बह्र :- फ़ऊल फ़ैलुन फ़ऊल फ़ैलुन

कहीं थे बाज़ू कहीं बदन था
हिजाब आलूद पैरहन था

निगाह ख़ंजर बनी हुई थी
नज़र हटाई तो गुलबदन था

कहाँ तलक उससे बच के चलते
वो डाली डाली चमन चमन था

समझ के गुलशन की बात की थी
मुराद मेरी तिरा बदन था

सालीक़ा लाओगे वो कहाँ से
सुना है फ़रहाद कोहकन था

हर एक मंज़िल पे देखा जाकर
वही सितारा वही गगन था

भला सा लगता था उन दिनों में
तिरी अदा में जो बांकपन था

अभी "समर" की बिसात क्या है
कभी तुम्हारा वो जान-ए-मन था


"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 792

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on April 30, 2015 at 10:37am
जनाब मनोज कुमार अहसास जी ,आदाब ,ग़ज़ल में शिर्कत और हौसला अफ़ज़ाई के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ |

"समझ के गुलशन की बात की थी
मुराद मेरी तिरा बदन था"

यह ग़ज़ल का बहुत ही नाज़ुक शैर है, "मुराद" का मतलब यहाँ दुआ या ख़्वाहिश नहीं बल्कि "इशारा" है |
Comment by Samar kabeer on April 30, 2015 at 10:28am
जनाब श्याम नारायण वर्मा जी,आदाब,ग़ज़ल की सराहना हेतु आपका आभारी हूँ |
Comment by Samar kabeer on April 30, 2015 at 10:25am
जनाब श्री सुनील जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ |
Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 30, 2015 at 3:27am

आदरणीय समर कबीर जी खूबसूरत ग़ज़ल के लिये बधाई ....सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 30, 2015 at 1:42am
आदरणीय समर कबीर साहेब , नमस्कार , बहुत ही खूबसूरत , शृंगारिक प्रस्तुति है, बहुत बहुत बधाई, सादर।
Comment by narendrasinh chauhan on April 29, 2015 at 5:54pm

बहुत उम्दा ग़ज़ल

Comment by मनोज अहसास on April 29, 2015 at 3:53pm
नमस्कार सर फरहाद भी और बदन की मुराद भी दोनों एक ही ग़ज़ल में
वाह कमाल हो गया
बहुत खूब
Comment by Shyam Narain Verma on April 29, 2015 at 3:15pm
बहुत खूब , पूरी ग़ज़ल बहुत उम्दा है , बहुत बहुत बधाई, सादर ,
Comment by shree suneel on April 29, 2015 at 1:40pm
आदरणीय समर कबीर सर, क्या ख़ूब ग़ज़ल कही आपने. मज़ा आ गया. सारे अशआर ख़ूबसूरत हैं.
सालीक़ा लाओगे वो कहाँ से
सुना है फ़रहाद कोहकन था

हर एक मंज़िल पे देखा जाकर
वही सितारा वही गगन था.. ख़ूब. . बधाई आपको.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागत है"
1 hour ago
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
Thursday
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
Wednesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Apr 14

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Apr 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Apr 13

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service