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वह आकाश में परिंदे की तरह उड़ रही थी ।माँ निश्चिन्त थी की बेटी तरक्की कर रही और पिता आजादी दे समय से ताल मिला रहे थे।बेटी के सोने -जागने , आने जाने से किसी का कोई सरोकार नहीं था।

" पापा मेरी तबियत खराब हो गयी है ।"

मुँह अँधेरे होटल पंहुचे पिता अपनी पुत्री को अस्त व्यस्त और नशे में डूबी देख समझ चुके थे की क्या घट चुका है।

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Archana Tripathi on April 27, 2015 at 10:48pm
आभारी हूँ ,आपकी मोहन सेठी 'इन्तजार'जी।आपके मार्गदर्शन की आकांशी
Comment by Archana Tripathi on April 27, 2015 at 10:42pm
शुक्रिया नेहा अग्रवाल जी
Comment by neha agarwal on April 27, 2015 at 3:29pm
वाह दी
Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 27, 2015 at 6:43am

ये लघुकथा प्रशन उठाती है कि लड़कियों को आज़ादी देना क्या उचित है ....हर लड़की नासमझ होती नहीं है एवं आज़ादी और दायित्व freedom and responsibility दोनों की शिक्षा जरूर माता पिता की जुम्मेवारी है  .....लघुकथा के लिये बधाई 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 26, 2015 at 4:20pm

सभी चीज का एक स्याह पहलू भी होता है! एक हद के अन्दर ही सभी चीज अच्छी लगती हैं,आजादी भी!

सुन्दर लघुकथा पर बधाई आ० अर्चना जी!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 26, 2015 at 9:18am

आज़ादी की कीमत बहुधा एक महिला को ही चुकानी पड़ती है बहुत संवेदनशील लघुकथा है बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by aman kumar on April 25, 2015 at 1:58pm

आम तौर परआजकल के बच्चे स्वम ही स्थिति संभालते है , और आजाद .... ख्याल पिता खुद नही , उनके नौकर जाते है होटल मे ..

और जो घट जाने" का संदेश है वो तो आजकल संदर्भ खो चुका है , वो एक सिगरेट पीना जैसा ही है उस सोसाइटी मे ,

परंतु हमारे लिए कथा का महत्व बहुत है ! अभी भी ..... जय हो  

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 24, 2015 at 6:54pm
कुछ प्रश्न उठा ( पूछ ) रही है यह लघु-कथा।
हाँ , नौकरी कर रहे बच्चों को सीख देने की अवधि निकल चुकी होती है, उत्तरदाईत्व स्वयं समझने की उम्र आ चुकी होती है।
स्वतंत्रता का उपभोग कैसे करें यह स्वयं सोचना , निर्धारित करना पड़ता है। उम्र की कुछ अवस्थाओं में संतुलन जल्दी बिगड़ता है. .
चेतना जागृति करती है यह कथा।
बधाई। सादर।
Comment by Nidhi Agrawal on April 24, 2015 at 5:46pm

बहुत सटीक और धारदार लघुकथा हुई.. माँ बाप जब अपनी जिम्मेदारी नहीं समझते यही होता है 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 24, 2015 at 4:52pm

आदरणीया अर्चना जी अच्छी लघुकथा लिखी है आपने. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई 

कृपया ध्यान दे...

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