For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बह्र : २२ २२ २२ २

 

जीवन में कुछ बन पाते

हम इतने चालाक न थे

 

सच तो इक सा रहता है

मैं बोलूँ या वो बोले

 

पेट भरा था हम सबका

भूख समझ पाते कैसे

हारेंगे मज़लूम सदा

ये जीते या वो जीते

 

देख तुझे जीता हूँ मैं

मर जाता हूँ देख तुझे

-------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 619

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by मनोज अहसास on April 23, 2015 at 3:08pm
शुक्रिया सर
Comment by Samar kabeer on April 22, 2015 at 6:32pm
जनाब मनोज कुमार अहसास जी,आदाब,मिसाल के लिए धर्मेन्द्र जी को कोई शैर याद नहीं आ रहा,मुझे एक मतला याद है,शायद इससे आपकी तसल्ली हो जाए :-

ये जैसे बढ़ के अभी आसमान छू लेंगे
कहीं कहीं से यूँ फूटे हैं दस्त-ओ-पा फिर से
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 22, 2015 at 5:12pm
आ. मनोज साहब, ऐसी कोई ग़ज़ल मेरी जानकारी मे नहीं है। इसीलिए तो ये नियमों का पालन करते हुए एक नया प्रयोग है।
Comment by मनोज अहसास on April 22, 2015 at 4:05pm
जी साहब समाधान तो हो गया पर मन नहीं मान रहा है कृपिया किसी शायर की कोई मशहूर ग़ज़ल उदाहरण के रूप में बता दे
बड़ी कृपा होगी

सादर
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 22, 2015 at 10:23am

शुक्रिया आदरणीय विजय शंकर जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 22, 2015 at 10:22am

आ. मनोज कुमार साहब, ग़ज़ल में रदीफ़ का होना जरूरी नहीं होता। ऐसी ग़ज़ल को गैरमुरद्दफ़ ग़ज़ल कहते हैं। इसी तरह काफ़िया का तुकांत होना आवश्यक नहीं होता। जैसे ‘रहता’ और ‘तन्हा’ ग़ज़ल का काफ़िया बन सकते हैं यहाँ काफ़िया ‘अ’ या ‘अलिफ़’ पर टिकता है। उम्मीद है आपकी शंका का समाधान हो गया होगा।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 22, 2015 at 10:20am

बहुत बहुत शुक्रिया आ. मिथिलेश जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 22, 2015 at 10:20am

बहुत बहुत शुक्रिया आ. गिरिराज जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 22, 2015 at 10:19am

शुक्रिया वीनस भाई।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 22, 2015 at 10:19am

बहुत बहुत शुक्रिया जनाब समर साहब। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी,  हार्दिक धन्यवाद प्रशंसा के लिए | गेयता के संबंध में आप सही हैं| "
11 minutes ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, प्रदत्त चित्र को बहुत शाब्दिक किया है आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें.…"
15 minutes ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्र को महाकुम्भ से जोड़कर आपने बहुत सुन्दर…"
20 minutes ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रभाजी बहुत ही सुन्दर तरीके से हर पद में तुकांतता का ध्यान रखते हुए मनहरण घनाक्षरी की…"
23 minutes ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"  जी ! आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, मैंने सायास प्रदत्त चित्र को कुम्भ से जोड़ने…"
29 minutes ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, प्रस्तुत छंद की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार. सादर "
36 minutes ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
" आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, मेरे प्रस्तुत कवित्त पर कवित्त में प्रतिक्रिया पाना मेरा सौभाग्य…"
37 minutes ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"  जी ! सादर प्रणाम. "
41 minutes ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   लगता न पल एक, शंख कोई फूँक दे तो, सोते  सनातनियों  को, कभी …"
42 minutes ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी,  चार पंक्ति में ही कुंभ का दृश्य सामने आ गया| हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति पर…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। छंदों पर आपकी उपस्थिति व कमियों को उजागर करने के लिए आभार। इस छंद…"
3 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी  चित्र  पर बहुत कुछ लिख गए | प्रयास सराहनीय है | पर छंद के नियमों का…"
4 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service