For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अतुकांत - हार जाने के डर से छिपाये हुये तर्क - ( गिरिराज भंडारी )

हार जाने के डर से छिपाये हुये तर्क

*******************************

कोरी बातों से या आधे अधूरे समर्पण से  

किसी भी परिवर्तन की आशायें व्यर्थ है

जब तक आत्मसमर्पण न कर दें आप

तमाम अपने छुपाये हुये हथियारों के साथ

अंदर तक कंगाल हो के

सद्यः पैदा हुये बालक जैसे , नंगा, निरीह और सरल हो के

सत्य के सामने या

वांछित बदलाव के सामने 

 

आपके सारे अब तक के अर्जित ज्ञान ही तो

हथियार हैं आपके

वही तो सुझाते हैं आपको तर्क – कुतर्क  

अपने पक्ष में

हर शुभ बदलाव के विरुद्ध

 

जो तर्क सामने आते हैं

सत्य रूपी ब्रम्हास्त्र से हार जाते हैं , जो स्वाभाविक है

आप घबरा के हो जाते हैं मौन , बाक़ी हथियार छुपाये , तात्कालिक मौन

केवल बाहरी तौर पर मौन

ऐसे , जैस कि आप हार चुके हों

सब कुछ , पर

बचा ले जाते हैं आप अपने थोथे तर्क

छिपा कर , अपने अंदर कहीं

वो तर्क जो कंगाल हो जाने के भय से नहीं निकाले गये

सत्य के सामने

वो तर्क जिन्हें रोप के आप पैदा कर लेंगे

हज़ारों और बेहूदे तर्क

 

ठीक वैसे ही, जैसे बचाया जाता है जामन

दही के लिये , मटकी में

 

फिर कोई कितना भी अमृत – दूध डाले

मटकी में छिपा- बचा हुआ जामन

बना देता है उसे

रातों रात फिर से दही

 

आप होशियार हैं

कभी भी नहीं धोते आप मटकी को ऐसा / इतना

कि , न बच पाये जामन , रंच मात्र भी  

क्यों कि , आपको दही से प्यार जो है ॥

**************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 722

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 17, 2015 at 12:18pm

अनुज //मित्र

सचमुच झूठे तर्कों से  हम हमेशा अप्मने को बेदाग बनाये रखने का प्रयास  करते है जो प्रवृत्ति बन जाती है .क्योंकि हमे दूध से नही दही से  प्यार है ........ बहुत खूब . सादर .

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 17, 2015 at 10:59am
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, बहुत ही गम्भीर बिंदु उठाया है आपने , बधाई, मटकी में जामन न छूट जाये , उसे पूरा साफ किया जाये , मस्तिष्क को समस्त विकृतियों से खाली किया जाए और फिर उसमें ताज़ा दूध या विकृतियों से मुक्त ज्ञान डाला जाये , यह प्रश्न अतीत में संभवत: तबसे चला आ रहा है जब से मनुष्य को संगत असंगत का भान होने लगा। तमात धर्मोपदेशकों ने , पुरातन काल के चिंतक प्लेटो तक ने इस पर बहुत चिंतन मनन किया है ,
……… पर ये शातिर दिमाग ही है जो थोड़ा सा जामन छोड़ ही देता है , और कुछ घंटों में दूध का दही हो जाता है।
……… वैसे सार यही है कि हम , जो मटकी को इतना धोते नहीं , जो चाहते हैं होता वही है जो हम चाहते हैं , तो समाधान भी इसी में छुपा है , हम एक बार चाह लें कि दही न जमें तो नहीं जमेगा। बस चाहना भर है ....... एक सशक्त चाहना , क्या नहीं हो सकता , वैसे भी ज़माना , यूज़ एण्ड थ्रो वाली चीजों के प्रयोग का है।
बहुत सार्थक प्रस्तुति, बधाई , सादर।
Comment by Samar kabeer on April 17, 2015 at 10:32am
जनाब गिरिराज भंडारी जी,आदाब,अगर आपको शब्दों का जादूगर कहा जाए तो ग़लत नहीं होगा,यह आपके शब्दों और भावों का ही असर है कि पहली पंक्ति से आख़री पंक्ति तक दो बार आपकी रचना सुन चुका हूँ :-
"अल्लाह करे ज़ोर-ए-क़लम और ज़्यादा"

इस अच्छी और सुन्दर रचना के लिये दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"  सरसी छंद  : हार हताशा छुपा रहे हैं, मोर   मचाते  शोर । व्यर्थ पीटते…"
2 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे परिवेश। शत्रु बोध यदि नहीं हुआ तो, पछताएगा…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
18 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
20 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Dec 14
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service