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ग़ज़ल : नीली लौ सी तेरी आँखों में शायद पकता है मन

बह्र : २२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २

 

यूँ तो जो जी में आए वो करता है, राजा है मन

पर उनके आगे झटपट बन जाता भिखमंगा है मन

 

उनसे मिलने के पहले यूँ लगता था घोंघा है मन

अब तो ऐसा लगता है जैसे अरबी घोड़ा है मन

 

उनके बिन खाली रहता है, कानों में बजता है मन

जिसमें भरकर उनको पीता हूँ वो पैमाना है मन

 

पहले अक़्सर मुझको लगता था शायद काला है मन

पर उनसे लिपटा जबसे तबसे गोरा गोरा है मन

 

मुझको इनसे अक्सर भीनी भीनी ख़ुशबू आती है

नीली लौ सी तेरी आँखों में शायद पकता है मन

---------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 3, 2015 at 9:38am
बहुत बहुत धन्यवाद आ. श्याम नारायण वर्मा जी
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 3, 2015 at 9:37am
बहुत बहुत शुक्रिया नज़ील साहब
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 2, 2015 at 9:39pm

तकनीक और भाव से भरपूर राजा है मन, प्यारा है मन! बहुत खूबसूरत !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 2, 2015 at 1:36pm

आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , बहुत कठिन रदीफ ले कर आप आसानी से निभा लेते हैं , बहुत खूब , आदरणीय हार्दिक बधाई ॥

Comment by umesh katara on April 2, 2015 at 12:41pm

उनसे मिलने के पहले यूँ लगता था घोंघा है मन

अब तो ऐसा लगता है जैसे अरबी घोड़ा है मन
वाहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहह

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 2, 2015 at 11:44am

आ० भाई  धर्मेंद्र जी इस सुंदर रचना  के लिए हार्दिक बधाई .

Comment by somesh kumar on April 2, 2015 at 11:39am

मुझको इनसे अक्सर भीनी भीनी ख़ुशबू आती है

नीली लौ सी तेरी आँखों में शायद पकता है मन

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 2, 2015 at 5:30am

मुझको इनसे अक्सर भीनी भीनी ख़ुशबू आती है

नीली लौ सी तेरी आँखों में शायद पकता है मन

आदरणीय सभी शेर सुंदर हैं ....सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 2, 2015 at 12:04am

आदरणीय धर्मेन्द्र जी बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बधाई 

Comment by MAHIMA SHREE on April 1, 2015 at 9:09pm

मुझको इनसे अक्सर भीनी भीनी ख़ुशबू आती है

नीली लौ सी तेरी आँखों में शायद पकता है मन...क्या बात..बेहद उम्दा.. बधाई आपको

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