For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - पानी का बना होगा....... (मिथिलेश वामनकर)

1222---1222---1222---1222

 

ग़लतफ़हमी कि पोखर साफ़ पानी का बना होगा

कमल खिलता हुआ होगा तो कीचड़ से सना होगा।

 

सुख़नवर ने सुखन की बाढ़ ला दी क्या कहे साहिब

सुखन में है सुखन कितनी, यही बस सोचना होगा।

 

उजाले कुछ सदाकत के संभालों आखिरी दम को 

न कोई साथ में होगा, अँधेरा भी घना होगा।

 

रवां रफ़्तार में खोया तू अपनी कामयाबी की

न तेरा छूट जाए घर, इसे अब रोकना होगा।

 

दिया है कब निज़ामत ने किसी को मांगने से कुछ

अगर हक़ चाहिए तुमको जबर से छीनना होगा।

 

अमूमन फेसबुक पर मैं बहुत अपडेट रहता हूँ

पड़ोसी कौन है मत पूछ शायद सोचना होगा।

 

हमेशा जी-हुजूरी से यहाँ सब काम होते है

हुनर अब जेब में रख लो कि नाहक ही फ़ना होगा।

 

 

-------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
-----------------------------------------------------

Views: 1045

Facebook

You Might Be Interested In ...

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 22, 2015 at 2:57am
आदरणीय नदीम भाई जी तू ही तू वाला मिसरा आपका ही है। उसे स्वीकार न करने का कारण दिया है।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 21, 2015 at 8:52pm

आदरणीय निर्मल भाई जी निवेदन है कृपया मतले के सुझाव दीजिए, आपकी प्रतिक्रिया पर सतत् मनन चल रहा है. अभी छंदोत्सव पर जा रहा हूँ. सादर 

Comment by Nirmal Nadeem on March 21, 2015 at 8:42pm
भाई साहब मेरे हिसाब से मैंने अपनी प्रतिक्रिया दी है यह सही ही हो यह ज़रूरी तो नही। तू ही तू वाला मिसरा मैंने बदला है आप एक बार फिर देखें। और यह मात्र एक प्रतिक्रिया है। आप की भी बात सही है गलत नहीं। धन्यवाद सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 21, 2015 at 8:32pm

आदरणीय बागी सर, रचना पर आपकी उपस्थिति ने मान बढ़ा दिया. हार्दिक आभार, नमन 

सर मैं व्हाट्स एप पर बिलकुल अपडेट नहीं हूँ. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 21, 2015 at 8:29pm

आदरणीय निर्मल नदीम जी आप को ग़ज़ल पसंद आई लिखना सार्थक हुआ. आपने मतला विषयक जो बात रखी है उसके सम्बन्ध में कहना चाहता हूँ कि-

 

ग़लतफ़हमी कि पोखर साफ़ पानी का बना होगा

कमल खिलता हुआ होगा तो कीचड़ से सना होगा।

 

सतही या ऊपरी तौर पर सब ठीक ठाक और सही दिखने वाली स्थिति हमेशा सही नहीं होती.

जब भी ऊपर से जब सही दिखाई देता है तो उस स्थिति की तह में बड़ी समस्या, विडंबना और कई राज भी छुपे होते है. कीचड़ में कमल खिलते है तो कमल खिलता है वहां कीचड़ भी होता है.

 

सुख़नवर ने सुख़न की बाढ़ ला दी क्या कहें साहिब
सुखन में है सुखन कितना, हमें अब सोचना होगा।

 

सुखन पुल्लिंग है अतः कितनी के स्थान पर कितना सही सुझाव है. सुखन की बाढ़ सुखनवर ने लाई है तो सोचा कि उसे ही सोचने दे, हमें क्यों सोचना होगा.

 

उजाले कुछ सदाक़त के संभालो आख़िरी दम तक..... मैंने भी पहले यही लिखा था. फिर आखिरी दम की खातिर के भाव हेतु को किया.
सफ़र में तू ही तू होगा, अँधेरा भी घना होगा।........... जाना तो अकेले ही है भाई जी, बस किसी के साथ न होने के भाव को अधिक गहरे से व्यक्त करने के लिए ये कहा- न कोई साथ में होगा, अँधेरा भी घना होगा। तू ही तू शब्द संयोजन ऐसा है कि इससे उस परमपिता परमेश्वर का आभास होने लगता है और जहाँ तू ही तू है वहां अँधेरा तो हो ही नहीं सकता.

 

दिया है कब निजामत ने किसी को मांगने से कुछ
अगर हक़ चाहिए तुमको तो जबरन छीनना होगा। .... पहले जबरन ही लिखा था क्योकिं यही शब्द सहज था मगर बात बहुत सुनी सुनाई लगी इसलिए छीनने के भाव को और घना करने के लिए जबर से का प्रयोग किया है.

 

रचना पर अमूल्य सुझाव और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार. आपके सुझाव और मार्गदर्शन पर विचार जारी है. अभी जितना समझ सका, लिख रहा हूँ. संभवतः अपनी बात स्पष्ट कर सका हूँ.  सादर

 

Comment by Nirmal Nadeem on March 21, 2015 at 8:07pm
आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहब। आपकी ग़ज़ल पढ़ी बहुत अच्छा लगा। लेकिन आपके मतले का कोई भी मतलब मैं निकाल नहीं सका। अन्य मित्रों और गुणीजनों की प्रतिक्रिया भी पढ़ी मैंने।

ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी मुझे। मुबारक हो। लेकिन मतले पे एक बार अवश्य विचार करे।

यदि यह ग़ज़ल मैं कहता तोशेर कुछ यूँ होते।


सुख़नवर ने सुख़न की बाढ़ ला दी क्या कहें साहिब
सुखन में है सुखन कितना, हमें अब सोचना होगा।

उजाले कुछ सदाक़त के संभालो आख़िरी दम तक
न कोई साथ आएगा अँधेरा जब घना होगा।

वो अपनी कामयाबी की रवानी में यूँ खोया है
कहीं छूटे न उसका घर, उसे अब रोकना होगा।

दिया है कब निजामत ने किसी को मांगने से कुछ
अगर हक़ चाहिए तुमको तो जबरन छीनना होगा।

अमूमन फेसबुक पर मैं बहुत अपडेट रहता हूँ
पडोसी कौन है मत पूछ शायद सोचना होगा।

हमेशा जी हजूरी से यहाँ सब काम होते हैं
हुनर तू ज़ेब में रख ले ये नाहक़ ही फ़ना होगा।

सादर सप्रेम

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 21, 2015 at 7:59pm

आदरणीय निर्मलभाईजी, आपकी सदाशयता के लिए हार्दिक धन्यवाद. मुझे जो कहना था कह दिया, आदरणीय.

सादर

Comment by Nirmal Nadeem on March 21, 2015 at 7:56pm
आदरणीय सौरभ पाण्डेय साहब मैं आपकी बातों को अन्यथा नहीं ले रहा हूँ। अगर आपको मेरी तरफ से कोई परेशानी हो या मेरे व्यवहार में कोई उद्दंडता दिखाई पड़े तो आप साधिकार मुझे डाट सकते हैं। आप मुझे सही रास्ता बतायेगे तो मुझे ख़ुशी होगी। सादर सप्रेम।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 21, 2015 at 7:49pm

आदरणीय निर्मल नदीमजी, आप अन्यान्य सोशल साइट की धमक तथा उनके एकांगी प्रभाव से बाहर निकल आयें. यह एक समरस मंच है,  परस्पर ’सीखना-सिखाने’ की परम्परा को अंगीकार करता हुआ.  सीखना और तदनुरूप सुधरना एक अनवरत प्रक्रिया है.

कहे को अन्यथा न लें. आप अभी नये सदस्य हैं अतः यथोचित संवाद अपरिहार्य है.

सादर


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 21, 2015 at 7:45pm

अमूमन व्हाट्स एप पर मैं बहुत अपडेट रहता हूँ
पड़ोसी कौन है मत पूछ शायद सोचना होगा।

:-)))))))))))))

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर और भावप्रधान गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"सीख गये - गजल ***** जब से हम भी पाप कमाना सीख गये गंगा  जी  में  खूब …"
6 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"पुनः आऊंगा माँ  ------------------ चलती रहेंगी साँसें तेरे गीत गुनगुनाऊंगा माँ , बूँद-बूँद…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"एक ग़ज़ल २२   २२   २२   २२   २२   …"
12 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"स्वागतम"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service