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ग़लतफ़हमी कि पोखर साफ़ पानी का बना होगा |
कमल खिलता हुआ होगा तो कीचड़ से सना होगा। |
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सुख़नवर ने सुखन की बाढ़ ला दी क्या कहे साहिब |
सुखन में है सुखन कितनी, यही बस सोचना होगा। |
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उजाले कुछ सदाकत के संभालों आखिरी दम को |
न कोई साथ में होगा, अँधेरा भी घना होगा। |
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रवां रफ़्तार में खोया तू अपनी कामयाबी की |
न तेरा छूट जाए घर, इसे अब रोकना होगा। |
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दिया है कब निज़ामत ने किसी को मांगने से कुछ |
अगर हक़ चाहिए तुमको जबर से छीनना होगा। |
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अमूमन फेसबुक पर मैं बहुत अपडेट रहता हूँ |
पड़ोसी कौन है मत पूछ शायद सोचना होगा। |
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हमेशा जी-हुजूरी से यहाँ सब काम होते है |
हुनर अब जेब में रख लो कि नाहक ही फ़ना होगा। |
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Comment
आदरणीय निर्मल भाई जी निवेदन है कृपया मतले के सुझाव दीजिए, आपकी प्रतिक्रिया पर सतत् मनन चल रहा है. अभी छंदोत्सव पर जा रहा हूँ. सादर
आदरणीय बागी सर, रचना पर आपकी उपस्थिति ने मान बढ़ा दिया. हार्दिक आभार, नमन
सर मैं व्हाट्स एप पर बिलकुल अपडेट नहीं हूँ.
आदरणीय निर्मल नदीम जी आप को ग़ज़ल पसंद आई लिखना सार्थक हुआ. आपने मतला विषयक जो बात रखी है उसके सम्बन्ध में कहना चाहता हूँ कि-
ग़लतफ़हमी कि पोखर साफ़ पानी का बना होगा
कमल खिलता हुआ होगा तो कीचड़ से सना होगा।
सतही या ऊपरी तौर पर सब ठीक ठाक और सही दिखने वाली स्थिति हमेशा सही नहीं होती.
जब भी ऊपर से जब सही दिखाई देता है तो उस स्थिति की तह में बड़ी समस्या, विडंबना और कई राज भी छुपे होते है. कीचड़ में कमल खिलते है तो कमल खिलता है वहां कीचड़ भी होता है.
सुख़नवर ने सुख़न की बाढ़ ला दी क्या कहें साहिब
सुखन में है सुखन कितना, हमें अब सोचना होगा।
सुखन पुल्लिंग है अतः कितनी के स्थान पर कितना सही सुझाव है. सुखन की बाढ़ सुखनवर ने लाई है तो सोचा कि उसे ही सोचने दे, हमें क्यों सोचना होगा.
उजाले कुछ सदाक़त के संभालो आख़िरी दम तक..... मैंने भी पहले यही लिखा था. फिर आखिरी दम की खातिर के भाव हेतु को किया.
सफ़र में तू ही तू होगा, अँधेरा भी घना होगा।........... जाना तो अकेले ही है भाई जी, बस किसी के साथ न होने के भाव को अधिक गहरे से व्यक्त करने के लिए ये कहा- न कोई साथ में होगा, अँधेरा भी घना होगा। तू ही तू शब्द संयोजन ऐसा है कि इससे उस परमपिता परमेश्वर का आभास होने लगता है और जहाँ तू ही तू है वहां अँधेरा तो हो ही नहीं सकता.
दिया है कब निजामत ने किसी को मांगने से कुछ
अगर हक़ चाहिए तुमको तो जबरन छीनना होगा। .... पहले जबरन ही लिखा था क्योकिं यही शब्द सहज था मगर बात बहुत सुनी सुनाई लगी इसलिए छीनने के भाव को और घना करने के लिए जबर से का प्रयोग किया है.
रचना पर अमूल्य सुझाव और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार. आपके सुझाव और मार्गदर्शन पर विचार जारी है. अभी जितना समझ सका, लिख रहा हूँ. संभवतः अपनी बात स्पष्ट कर सका हूँ. सादर
आदरणीय निर्मलभाईजी, आपकी सदाशयता के लिए हार्दिक धन्यवाद. मुझे जो कहना था कह दिया, आदरणीय.
सादर
आदरणीय निर्मल नदीमजी, आप अन्यान्य सोशल साइट की धमक तथा उनके एकांगी प्रभाव से बाहर निकल आयें. यह एक समरस मंच है, परस्पर ’सीखना-सिखाने’ की परम्परा को अंगीकार करता हुआ. सीखना और तदनुरूप सुधरना एक अनवरत प्रक्रिया है.
कहे को अन्यथा न लें. आप अभी नये सदस्य हैं अतः यथोचित संवाद अपरिहार्य है.
सादर
अमूमन व्हाट्स एप पर मैं बहुत अपडेट रहता हूँ
पड़ोसी कौन है मत पूछ शायद सोचना होगा।
:-)))))))))))))
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