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ग़ज़ल-फागुन की मस्ती में

बड़ा चंचल हुवा जाता है मन फागुन की मस्ती में
नज़र आता है जब भीगा बदन फागुन की मस्ती में

लगी है दिल में ये कैसी अगन फागुन की मस्ती में
मज़ा देती है शोलों की तपन फागुन की मस्ती में

चली है झूमती गाती पवन फागुन की मस्ती में
खिला जाता है ये दिल का चमन फागुन की मस्ती में

सखी मन का मयूरा है मगन फागुन की मस्ती में
पिया से जा लगे मोरे नयन फागुन की मस्ती में

ये सोचा है कि इज़हार-ए-मुहब्बत कर ही डालूंगा
अगर हो जाएगा उन से मिलन फागुन की मस्ती में

अगर वो सामने होते तो मस्ती और बढ़ जाती
है दिल में एक मीठी सी चुभन फागुन की मस्ती में

वहीं ख़ैमे लगाकर फाग का उत्सव मनाते हैं
जहाँ लग जाए बंजारों का मन फागुन की मस्ती में

मिरी मदहोशियों में चाँद पूनम का भी शामिल है
मिला देता है ये अपनी किरन फागुन की मस्ती में

ये सब टैसू के फूलों की बदौलत है "समर"देखो
गुलाबी हो गया नीला गगन फागुन की मस्ती में

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment

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Comment by maharshi tripathi on March 1, 2015 at 7:06pm

मिरी मदहोशियों में चाँद पूनम का भी शामिल है
मिला देता है ये अपनी किरन फागुन की मस्ती में,,,,,,,,,,,,इस  खूबसूरत पंक्ति पर आपको बधाई आ.समर कबीर जी |

 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 1, 2015 at 1:17pm

आदाब कबीर साहेब !

बड़ी सुन्दर गजल कही आपने i बधाई पेश करता हूँ i सादर i

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