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चांदनी और छाँव

 

आधी रात

चांदनी और छाँव

तस्करों का हरा-हरा गाँव

जालिमो में कुछ अधेड़

कुछ तरु, कुछ वृक्ष, कुछ पेड़

 

कुछ घर थे गरीबों के भी

दांतों के बीच जीभों के भी

सचमुच बदनसीबों के भी   

 

आधी रात

चांदनी और छाँव

सन्नाटे में डरा-डरा गाँव

एक गरीब बुढ़िया के द्वार

तेजी से आया इक घुड़सवार

 

बुढिया की बेटी को उठाया

बेरहमी से अश्व पर चढ़ाया

फिर उस जीव को वापस भगाया 
 

आधी रात

चांदनी और छाँव

बूढ़ी आँखों से झरा-झरा गाँव

रोज ही यह सब होता

कौन कहाँ तक रोता  ?

 

बुझी आँख में नींद न समायेगी

जानती वह सुबह पूर्व आयेगी

कभी-बेरहम जवानी ढल जायेगी

 

आधी रात

चांदनी और छाँव

काला-स्याह मरा-मरा गाँव

आंख से निकलता मोती है सच्चा

बेटी की गोद में नन्हा सा बच्चा

 

जग से शायद टूट गया नाता

भारत में ऐसी भी होती है माता

अब कोई घुड़सवार नहीं आता

 

आधी रात

चांदनी और छाँव

दर्प अभिमान से भरा-भरा गाँव

(मौलिक व् अप्रकाशित )

 

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 14, 2015 at 8:15pm

आ० मिश्र जी

आपके स्नेह का आभारी हूँ i सादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 14, 2015 at 8:14pm

आदरणीय हरिप्रकाश जी

आपकी अनुशंसा से अभिभूत i सादर i

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 14, 2015 at 4:59pm

आदरणीय गोपाल सर .. आपकी यह रचना अत्यंत गंभीर है ..रचना के आगे बढ़ने के साथ साथ दृश्य बदलते जा रहे हैं ..इस अद्भुत प्रयोग हेतु  आपको ढेर सारी बढ़ायी सादर 

Comment by Hari Prakash Dubey on February 14, 2015 at 9:21am

आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव सर , गज़ब // आधी रात

चांदनी और छाँव

तस्करों का हरा-हरा गाँव

जालिमो में कुछ अधेड़

कुछ तरु, कुछ वृक्ष, कुछ पेड़//...... भारत में ऐसी भी होती है माता

अब कोई घुड़सवार नहीं आता....वाह ....सुन्दर रचना , हार्दिक बधाई सर , सादर !

 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 13, 2015 at 2:38pm

आदरणीय भंडारी जी /अनुज

कविता में कहानी का प्रयोग आपकी संस्तुति  से मेरे संतोष का उपादान  बनती  हुयी i सादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 13, 2015 at 2:35pm

आ० खुर्शीद जी

आपका आभार कैसे व्यक्त करूं i सादर अभिवादन i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 13, 2015 at 2:33pm

आदरणीय बागी जी

आपकी संस्तुति पाकर मन को संतुष्टि मिली i आपके स्नेह यूँ ही मिलता रहे यही कामना है i सादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 13, 2015 at 2:32pm

आ० श्याम नारायन  वर्मा जी

आपका बहुत बहुत आभार  i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 13, 2015 at 2:31pm

आ० विजय सर !

आपके समर्थन से हृदय आश्वस्त हुआ i सादर i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 13, 2015 at 7:41am

आदरणीय बड़े भाई , बहुत मार्मिक कहानी को आपने कविता का रूप  दिया है , पूरा मंज़र खींच दिया आपने ! वाह ! हार्दिक बधाइयाँ ।

कृपया ध्यान दे...

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