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 दुपट्टा

भारत के वक्ष पर

सलीके से पड़ा

सफ़ेद दुपट्टा

वायुयान से दिखी

धवल गंगा !

गंगा अब यहाँ नहीं बहती

साधु ने बालक से कहा

यह गंगा है

स्नान करोगे तो तर जाओगे

 

बालक बोला

कैसे साधु हो तुम

गंगा अब यहाँ नहीं बहती

इस नाले में नहाओगे

तो मर जाओगे !

मरी हुयी नदी

 

आत्मा जा चुकी है

शरीर बचा है

धीरेधीरे सड़ रहा है जो

पर हम मानते नहीं

गाय की मरी बछिया की तरह

चिपकाये है उसे

यह मानकर की

अभी वह मरी नहीं

जग को तारने वाली

स्वयं तो तरी नहीं

कहते है -संसद का मन चंगा

तो मरी हुयी नदी भी है

गंगा ! 

(मौलिक व् अप्रकाशित )

 

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Comment

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Comment by somesh kumar on January 18, 2015 at 11:12pm

रोज़ दिखाता है समाचार 

सरकार रही गंगा तार 

राम को छोड़ गंगा पर आए हैं 

ये भुनाना जानते भावनाएं हैं 

हर युग में अपना प्रतिमान बदलते है 

वोटो के लिए पहचान बदलते हैं |

कीमत सही मिले तो बिक जाती किरन  

अच्छे-अच्छों  के ईमान बदलते हैं |

गंगा पर एक समग्र दृष्टी और उसकी वर्तमान स्थितिः का बहुत सटीक वर्णन आदरणीय |
|

ये 


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Comment by मिथिलेश वामनकर on January 18, 2015 at 10:51pm

नमन सर .... गंगा को बिलकुल नए आयाम में व्यक्त करती इन तीन रचनाओं के लिए .... 

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 18, 2015 at 9:18pm
मैं यह नहीं कहूँगा कि व्यंग बहुत तीव्र एवं तीखा है, मैं कहूँगा कि सत्य बहुत ही कटु, कठोर , भयानक और वीभत्स है.
बड़ी मुश्किल से सत्ता मिलती है,
चैन की सांस मुश्किल से मिलती है,
लोग चैन से बैठने नहीं देते हैं,
सत्ता का सुख भोगने नहीं देते हैं,
हम आ गए , सब खुशहाली हैं,
हमारी तो रोज होली - दीवाली है,
हम देखते हैं सब चंगा ही चंगा है,
हम खुश हैं तो कठौती में गंगा है ॥
चलिए, एक कोशिश है , कभी गंगा भी खुश हो जाए। आदरणीय डॉ o गोपाल नारायण जी, शुभ हो, सादर।
Comment by gumnaam pithoragarhi on January 18, 2015 at 8:45pm

वाह सर क्या खूब दृष्टि है सभी स्थितियों को सामने रख किया खूबसूरती से वाह .........

कृपया ध्यान दे...

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