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" आप बस एक बार कह दो कि ये उन लोगों ने किया है , बाक़ी तो हम देख लेंगे " , मोहल्ले के तथाकथित धर्म गुरु काफी आवेश में थे | मौका अच्छा था और तमाम लोग इंतज़ार में थे इसका फायदा उठाने के लिए |
चच्चा सर झुकाये बैठे थे , चेहरा आँसुओं से तराबोर था | उनकी तो दुनिया ही मानो उजड़ गयी थी , जवान बेटे को खो चुके थे | लेकिन धीरे से सर उठा कर बोले " क़ातिल का कोई मज़हब नहीं होता "|

मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by गिरिराज भंडारी on January 14, 2015 at 12:28pm

आदरणीय विनय भाई , ऐसे ही चच्चा की बहुत ज़रूरत है , बहुत बढिया विषय मे सुन्दर लघुकथा के लिये बहुत बधाई ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 14, 2015 at 11:53am

वाह चच्चा------- जिंदाबाद  i ए  क हंगल की याद आ गयी i  


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Comment by rajesh kumari on January 14, 2015 at 11:08am

सच कहा कातिल का कोई मजहब नहीं होता ,अच्छी लघुकथा बधाई आपको 


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Comment by मिथिलेश वामनकर on January 14, 2015 at 10:44am
आदरणीय विनय जी बेहतरीन लघुकथा। कसा हुआ कथानक। सफल लघुकथा। कथा के मर्म पर अंतिम पंक्ति गहरा प्रभाव छोड़ती है। सच , क़ातिल का कोई मज़हब नहीं होता। इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई।

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