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मजदूरों की बस्ती में दो कँपकँपाती हुई आवाज़ें

“सुना है घर वापसी के 5 लाख दे रहे हैं”

“हाँ भाई मैं भी सुना”

“हम तो घर में ही रहते हैं, कुछ हमें भी दे देते”

-मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Hari Prakash Dubey on December 29, 2014 at 11:25pm

आ. शिज्जु "शकूर" जी बहुत  की कम शब्दों में सन्देश देने वाली इस रचना पर आपको हार्दिक बधाई !


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Comment by शिज्जु "शकूर" on December 29, 2014 at 11:18pm

आदरणीय गिरिराज सर आपका हार्दिक आभार, आपकी बात सही है कि दोनो गंदे हैं लेकिन ये बात नहीं भूल सकते की मूल समस्याओं की तरफ हुक्मरान का ध्यान नहीं जा रहा है या मुख्य मुद्दे बेकार की बातों में उलझकर गुम हो गये हैं


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Comment by शिज्जु "शकूर" on December 29, 2014 at 11:16pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायण सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on December 29, 2014 at 11:15pm

आदरणीय जितेन्द्र जी आपका बहुत बहुत शु्क्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on December 29, 2014 at 11:14pm

आदरणीय मिथिलेश भाई आपका हार्दिक आभार


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Comment by शिज्जु "शकूर" on December 29, 2014 at 11:14pm

आदरणीय श्याम नारायण जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on December 29, 2014 at 11:13pm

आदरणीय सोमेश कुमार जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on December 29, 2014 at 11:13pm

आदरणीया अर्चना जी आपका हार्दिक आभार


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Comment by गिरिराज भंडारी on December 29, 2014 at 10:39pm

आदरणीय शिज्जु भाई , सफल लघु , लघुकथा के लिये हार्दिक बधाई स्वीकर करें । इस विषय को मै कुछ कहने के लायक नही समझता इस लिये कभी इस विषय को छूता नहीं । क्योंकि हाथ दोनों के गन्दे हैं ( ये मेरा व्यक्तिगत अनुभव है ) और कथा में इशारा किसी एक की तरफ है । कानून का एक नियम है -- ए मैन शुड  कम विथ क्लीन हैंड । यहाँ सभी हाथ गन्दे हैं कौन किसे कहे ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 29, 2014 at 7:09pm

शिज्जू भाई

बहुत सांकेतिक किन्तु अर्थवान  i आपको बधाई  i

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