For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जीवन लड़कैया से, सपनो की नैया से

तारों के पार चलें, आओं ना यार चले

 

उतनी ही प्यास रहे, जितना विश्वास रहे

मन की तरंगों से पुलकित उमंगों से 

आशा के विन्दु से जीवन विस्तार चले........

 

क्या था जो पाया था, क्या था जो खोया था

था कुछ समेटा जो सारा ही जाया तो   

खुशियों की टहनी को थोड़ा सा झार चले.......

 

डोली पे फूल झरे, दो दो कहार चले

सुन्दर सी सेज सजी, तपने को देख रही

मन की अगनिया को थोड़ा सा बार चले .........

 

पांचो का मेल यहाँ, पाँचों में मेल हुआ

मिलने को प्रीतम से दुल्हन चल दी, जैसे

नदिया से सागर तक, पानी की धार चले........

 

-------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
-------------------------------------------------------

Views: 832

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 29, 2014 at 7:57pm

आदरणीय  khursheed khairadi  जी नवगीत के इस प्रयास पर आप के स्नेह और उत्साहवर्धन के लिए ह्रदय से आभारी हूँ. हार्दिक धन्यवाद 

Comment by khursheed khairadi on December 29, 2014 at 3:50pm

उतनी ही प्यास रहे, जितना विश्वास रहे

मन की तरंगों से पुलकित उमंगों से 

आशा के विन्दु से जीवन विस्तार चले........

 

क्या था जो पाया था, क्या था जो खोया था

था कुछ समेटा जो सारा ही जाया तो   

खुशियों की टहनी को थोड़ा सा झार चले.......

 आदरणीय मिथिलेश जी सभी बंध सुन्दर बने हैं , सरस भाव ,सहज लय और अनुराग एवं आशा की गति हर शब्द के साथ ध्वनित हो रही है |सादर अभिनन्दन |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 29, 2014 at 10:55am
आदरणीय सोमेश भाई जी बहुत बहुत आभार।
Comment by somesh kumar on December 28, 2014 at 11:22pm

काव्य-विधा पर सौरभ सर का आना और उसे सार्थक कहना ही रचना की सफ़लता को इंगित कर देता है |ऐसे में कहने के लिए कुछ भी शेष नहीं बचता |साधुवाद 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 28, 2014 at 10:02pm

आदरणीय सौरभ सर आपने  गीत-नवगीत के विषय में बहुत सही कहा - \\गीत-नवगीतों का अध्ययन\\तदनुरूप प्रयास\\

आदरणीय राहुल भाई जी ओ बी ओ पर नवगीत पर आदरणीय सौरभ सर का आलेख और उपलब्ध नवगीत पढ़े.. मेरे लिए यही सहायक रहा है .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 28, 2014 at 9:35pm

गीत-नवगीतों को लेकर ऐसे ही प्रश्न भाई राहुलजी ने मुझसे भी कई-कई-कई बार पूछे हैं.
मैं भाई राहुलजी को पहली बार ही यह सुझाव दे दिया था कि वे जितना हो सके गीत-नवगीतों का अध्ययन करें. तदनुरूप प्रयास करें. क्योंकि ऐसे प्रश्नों का सार्थक उत्तर मात्र और मात्र स्वाध्याय से ही संभव है. अन्यथा रेडीमेड उत्तर जो स्पून-फीडिंग के समकक्ष ही होंगे से कोई साहित्य साधना संभव नहीं है. अध्ययन के लिए इस मंच पर भी कई-कई गीत-नवगीत पोस्ट हुए हैं. इन सभी बातों को मैं मुखर हो कर साझा कर चुका हूँ.

मैं समझता था, मेरे उपर्युक्त सुझाव के बाद भाई राहुलजी को कोई संशय नहीं रहना था. मुझे यह भी लगा, कि मेरे उस सुझाव के बाद आगे मेरे द्वारा उन्हें उत्तर न मिलना मेरे द्वारा अनदेखी की गयी ऐसा कत्तई नहीं समझा गया होगा.
शुभेच्छाएँ.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 28, 2014 at 9:30pm

आदरणीय सौरभ सर, इस गीत को मैं नवगीत नहीं लिख पा रहा था क्योंकि नवगीत में निर्गुण भाव प्रयोग के तौर पर कर रहा था. वास्तव में नवगीत आपके आलेख को पढने के बाद ही लिखना आरम्भ किया... ये मेरा दूसरा नवगीत है और नवगीत में निर्गुण धारा की स्थिति के विषय में स्पष्ट नहीं हूँ. बहुत मन से लिखा यह नवगीत जिन सक्षम और परिपक्व हाथो तक पहुँचाना था वो पहुँच गया है, तुक के शब्दों का चयन विशेष तौर पर आप तक पहुँचाना चाहता था और ये सोच कर भाव विभोर हूँ कि आपने मेरे मनचाहे विषय पर मन को जीत लेने वाली टिप्पणी दी है. मेरे लिए आपकी टिप्पणी किसी भक्त की प्रार्थना पर भगवान् द्वारा दिए आशीर्वाद के समान है .... आज ह्रदय मंदिर में घंटियाँ बज रही है..... भजन गूँज रहे है..... आरतियाँ हो रही है ... अभिभूत हूँ ... भाव विभोर हूँ .  धन्यवाद कहकर इस आशीर्वाद को लघु नहीं करूँगा ... किसी रचनाकार को बार बार ऐसी टिप्पणियाँ नहीं मिलती...शब्द कम पड़ रहे है.बस नमन...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 28, 2014 at 9:14pm

आदरणीय राहुल भाई जी, सही कहूं तो गीत कैसा होता है मैं आज भी नहीं समझा हूँ बस लयात्मकता के साथ भावो से शब्द जोड़ते जाता हूँ और गीत हो जाता है. मुझे लगता है गीत हमारे संस्कारों में ही है. मैं गीतों के शिल्प पर वास्तव में कुछ भी नहीं समझ पाया हूँ. आपने जो प्रश्न किये है मुझे उन्हीं में उत्तर दिख रहा है -

१.क्या गीत स्वत: निर्मित बहर पर लिखा जा सकता है
२.क्या गीत का मुखडेा और अन्तरा अलग अलग बहर मे हो सकते है?
३.मैंने कुछ ऐसे भी गीत सुने जिनमे मुखडा फिर अन्तरा फिर बिना पुरक पंक्ति के ही टेक लगा दी जाती है! ये भी गीत है 

बाकी गुनिजन ही बता सकते है ... सादर 

Comment by Rahul Dangi Panchal on December 28, 2014 at 9:04pm
आदरणीय मिथिलेश सर क्रपया मेरी प्रार्थना स्वीकार करें!

१.क्या गीत स्वत: निर्मित बहर पर लिखा जा सकता है
२.क्या गीत का मुखडेा और अन्तरा अलग अलग बहर मे हो सकते है?
३.मैंने कुछ ऐसे भी गीत सुने जिनमे मुखडा फिर अन्तरा फिर बिना पुरक पंक्ति के ही टेक लगा दी जाती है!
क्रपया बताने का कष्ट करें! सादर प्रणाम!
Comment by Rahul Dangi Panchal on December 28, 2014 at 8:57pm
अदभुत रचना आदरणीय वाह जवाब नहीं आपका ! आपसी रचना मैं कब तक कर पाऊंगा! लाजवाब आदरणीय

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"  सरसी छंद  : हार हताशा छुपा रहे हैं, मोर   मचाते  शोर । व्यर्थ पीटते…"
4 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे परिवेश। शत्रु बोध यदि नहीं हुआ तो, पछताएगा…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
20 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
22 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Dec 14
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service