For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अन्धकार भी आज उदास है

भरी हुई मधुशालायें सारी

पीकर  सारे मस्त पड़ें हैं ,

मदिरालय पर लोगों का जमघट

अब मंदिर पर बंध जड़ें  हैं ,

मिटे दुःख दर्द गरीबी सारी

आया नव वर्ष उल्लास है ,

सुन्दर गति,सुन्दर मति सारी

अन्धकार भी आज उदास है ,

प्रकृति रंग बदल रही प्रतिपल

धन-धान्य का फैला प्रभाव है,

अभाव दिखता नहीं कहीं पर

दिखता समृधि का प्रभाव है ,

अतीत की पीड़ा सब विस्मृत

अब नए धुन की तलाश है,

अमृत बरस रहा गगन  से

आवृत  सारा  पराकाश  है ,

नवसर्जन की तलाश हो रही

लगता होने वाला विकास है ,

ख़त्म हो रहे अधर्म-वधर्म सब

संस्कृति कहती यही विकास है ,

नव आशाओं के दीप जल रहे

सुन्दर –सुन्दर सा विहान है ,

आनंदपूर्ण जियेगें अब सब

आया नव वर्ष, उल्लास है !!

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित"

 

Views: 630

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Hari Prakash Dubey on December 23, 2014 at 10:36am

आदरणीय गिरिराज सर रचना पर आपकी सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका आभार,आदरणीय  सौरभ पाण्डेय सर के निर्देश को पूरी तरह संज्ञान में ले लिया है ,आपका पुनः धन्यवाद ! सादर 

Comment by Hari Prakash Dubey on December 23, 2014 at 10:28am

आदरणीय  सौरभ पाण्डेय सर ,रचना पर प्रतिक्रिया के लिए आपका आभार , प्रस्तुतीकरण  वास्तव  में सुधार मांग रहा है सत्य है ,पर निरंतर सीखते जाना है ,आप ही लोगों के मार्दर्शन में,आपके आशीर्वाद की आकांशा के साथ ! सादर !

Comment by Hari Prakash Dubey on December 23, 2014 at 10:22am

सोमेश  भाई , आपकी सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका आभार , वास्तव   में अंधकार छट  नहीं रहा है ,धर्म-अधर्म और गरीबी भी  समाप्ति की और नहीं है , इसीलिए प्रारम्भ मे मधुशाला का सहारा लिया गया है , कल्पना की उड़ान मैं कुछ सकारात्मक अपेक्षाएं की  हैं, हालाकि शिल्प मैं निखार की जरूरत है ,सहमत  हूँ आपकी बात से ,पुनः धन्यवाद !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 23, 2014 at 8:28am

सुन्दर विचार युक्त रचना के लिये बधाइयाँ , आदरणीय हरि भाई । आ. सौरभ भाई के कहे को ध्यान अवश्य दीजियेगा ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 23, 2014 at 1:25am

नये वर्ष की अगवानी में प्रस्तुत हुई इस रचना के लिए धन्यवाद, आदरणीय हरि प्रकाशजी.

यह अवश्य है कि रचनाकर्म प्रस्तुतीकरण के लिहाज से अभी बहुत अभ्यास मांग रहा है.
सादर शुभेच्छाएँ

Comment by somesh kumar on December 22, 2014 at 11:25pm

नव आशाओं के दीप जल रहे

सुन्दर –सुन्दर सा विहान है ,

आनंदपूर्ण जियेगें अब सब

आया नव वर्ष, उल्लास है !!

 भाई जी ,बड़ी सच्चाई से बस केवल ये पंक्तियाँ पसंद आई ,पर कविता कि उस दृष्टी में संकुचन लगा ,जिस  परिपेक्ष्य में ये लिखी गई है |क्या वास्तव में अंधकार छट रहा है ,धर्म-अधर्म और गरीबी क्या समाप्ति की और हैं ,कृपया विचार करें |

Comment by Hari Prakash Dubey on December 22, 2014 at 10:05pm

आदरणीय शिज्जु "शकूर" सर आपका  बहुत बहुत धन्यवाद !

Comment by Hari Prakash Dubey on December 22, 2014 at 10:04pm

रचना पर प्रतिक्रिया पर आपका हार्दिक धन्यवाद योगेन्द्र सिंह जी !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 22, 2014 at 8:21pm

आदरणीय हरिप्रकाश दूबे सर सुंदर रचना है बहुत बहुत बधाई, नववर्ष की शुभकामनाओं सहित

Comment by Hari Prakash Dubey on December 22, 2014 at 1:55pm

  आपके इस सन्देश में नए वर्ष का आशीर्वाद मिल गया , सादर आभार डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर !!

 नए  वर्ष  में  नए हर्ष  में

        सुधियों  का  मकरंद i  

जीवन का परिमल बन जाए

        महकाए  हर   छंद i

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"दोहे- ******* अनुपम है जग में बहुत, राखी का त्यौहार कच्चे  धागे  जब  बनें, …"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"रजाई को सौड़ कहाँ, अर्थात, किस क्षेत्र में, बोला जाता है ? "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय  सौड़ का अर्थ मुख्यतः रजाई लिया जाता है श्रीमान "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"हृदयतल से आभार आदरणीय 🙏"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
Wednesday
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service