For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वह आज ही बेवा हुई ! (नज़्म, बह्र-ए-रजज़)

[ 2 2 1 2 ]

 

वो आज ही बेवा हुई !

 

बुझ-सी गई जब रौशनी, जमने लगी जब तीरगी,

बदली यहाँ फिर ज़िन्दगी, वह आज ही बेवा हुई !

क्यूं तीन बच्चे छोड़कर, मुंह इस जहां से मोड़कर,

वो हो गया ज़न्नतनशीं, वो आज ही बेवा हुई !

 

है लाश नुक्कड़ पे पड़ी, मजमा लगा चारो तरफ,

उस पर सभी नज़रें गड़ी, वह आज ही बेवा हुई !

वो रो रही फिर रो रही, बस लाश को वो ताकती,

उसने कहा कुछ भी नहीं, वो आज ही बेवा हुई !

 

फिर यकबयक वो चुप हुई, अब मैं सुहागन तो नहीं,

जैसे सिफ़र सी तिश्नगी, फिर  आँख में उसके चढ़ी,

 

उस लाश के पहने हुए, उस कोट पर उसकी नज़र,

था कोट वैसे तो फटा, खुद ज़िन्दगी से था कटा,

उसको तसल्ली हो गई, वो आज ही बेवा हुई !

 

फिर फिर तसल्ली सी हुई ये देखकर,

“इन सर्दियों में कोट अपना छोड़कर,

क्या खूब तुम हमदम हुए ज़न्नतनशीं,

शौहर मेरे, औलाद की क्या फ़िक्र की”

उसने उतारा कोट लेकर चल पड़ी,

 

बेवा हुई,

वो आज ही बेवा हुई !

लेकिन उसे इक कोट की दौलत मिली।

 

ये देख के सब लोग यूं हैरान थे, होने लगी चारो तरफ सरगोशियाँ।

मेरे ख़ुदा इसने भला ये क्या किया, इक लाश का भी कोट क्योंकर ले लिया।

ये लालची कितनी भला औरत हुई,

अब देख लो कैसी भला जुर्रत हुई।

ज़न्नतनशीं का क्यूं भला ये हाल है,

लाश का क्यूं इस कदर पामाल है।

ये पैरहन माटी मिले का ले गई,

बस याखुदा, बस याखुदा की गूँज थी।

बेवा हुई, वो आज ही बेवा हुई !

 

जाहिर कि वो सब लोग थे, बस लोग थे मुफ़्लिस नहीं,

मुफ़्लिस नहीं क्या जानते, होती भला क्या सर्दियां, होती भला क्या कंपकपी,

जमने लगे जब हड्डियाँ, जमने लगे जब ये लहू, रूकने लगे जब धड़कने,

फिर सांस भी थमने लगे, फिर हारती है ज़िन्दगी, वो आज ही बेवा हुई !

 

 

-------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित) - मिथिलेश वामनकर 
-------------------------------------------------------

 

 (नज़्म, बह्र-ए-रजज़)  [ 2 2 1 2 ]

Views: 737

Facebook

You Might Be Interested In ...

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 10, 2014 at 2:55pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी सर बहुत बहुत धन्यवाद, आभार।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 10, 2014 at 11:17am

आदरणीय मिथिलेश भाई , बहुत सुन्दर मार्मिक नज़्म कही ! दिली बधाइयाँ स्वीकार करें ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 9, 2014 at 9:00pm
पेशोपश- पसोपेश

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 9, 2014 at 8:49pm
आदरणीय सौरभ पाण्डे सर इस प्रयास को आपने पसंद किया मैं ह्रदय से आभारी हूँ, अभिभूत हूँ। इस क्षेत्र में नई रचनाधर्मिता के लिए सम्बल और प्रोत्साहन है आपकी टिप्पणी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 9, 2014 at 8:46pm
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय योगराज प्रभाकर सर। इस तरह बहर का इस्तेमाल उचित है या नहीं इसी पेशोपश में था। आपने मेरी दुविधा दूर कर दी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 9, 2014 at 8:43pm
धन्यवाद आदरणीय सोमेश कुमार जी

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 9, 2014 at 1:28pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकरजी, आपकी इस नज़्म पर हृदय से बधाइयाँ प्रेषित कर रहा हूँ. जिस रवानी में कहन को साधने का प्रयास हुआ है वह मुग्धकारी है.

जहाँ तक नज़्म या ग़ज़ल या कत्अ आदि का सवाल है, ये सभी आधारभूत बहरों पर ही निर्भर करती हैं. बस विधाओं के तौर पर उनमें अंतर होता है.  अब देखिये न, इस मंच पर इस बार के तरही मुशायरे का मिसरा जिस बहर पर आधारित है, २२१ १२२२ २२१ १२२२ इस पर फिल्म ’लाट साहब’ का एक बहुत ही मकबूल गीत है - 'ऐ चाँद ज़रा छुपजा, ऐ वक्त ज़रा थम जा..
कहने का मतलब है कि विधान के अनुसार ही कोई रचना ग़ज़ल या नज़्म या कत्अ होती है.

पुनः आपके प्रयासों और इस मार्मिक रचना के लिए हार्दिक बधाइयाँ व शुभकामनाएँ


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on December 9, 2014 at 12:08pm

जब बह्र के आधार पर गीत/नवगीत कहे जा सकते हैं तो नज़्म कहने में क्या हर्ज़ है ? बल्कि इससे तो नज़्म की रवानगी में गज़ब का इज़ाफ़ा होता है। नज़म बेहद खूबसूरत हुई है जिसके लिए दिल से बधाई प्रस्तुत है भाई मिथिलेश वामनकर जी।

Comment by somesh kumar on December 9, 2014 at 10:48am

खुबसुरत 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 8, 2014 at 11:07pm

कुछ अलग तरह से लिखने का प्रयास किया है. क्या नज़्म ऐसे ही लिखते है ? ये नज़्म है या नहीं ? गुनीजनो से मार्गदर्शन चाहता हूँ इसलिए यह पोस्ट की है .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
Monday
Mayank Kumar Dwivedi left a comment for Mayank Kumar Dwivedi
"Ok"
Sunday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Apr 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
Mar 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Mar 31
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Mar 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Mar 30
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service