For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

“मुझे पत्थरों से टकराने दो”

तुम बने रहो अविनाशी
मेरा सर्वनाश हो जाने दो
स्वयं बने रहो अजन्मे
मुझे जनम-जनम भटकाने को
रहो तुम बैठे मंदिरों में
मुझे यायावर बन जाने दो
करवाओ खुद पर फूलों की वर्षा
मुझे पत्थरों से टकराने दो
मुझे पत्थरों से टकराने दो !!
© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 462

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 10, 2014 at 1:48pm

परिस्थितिजन्य नैराश्य के चलते ईश्वर के समक्ष व्याकुल मन के भाव प्रस्तुत करने का सुन्दर प्रयास 

हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति पर 

//स्वयं बने रहो अजन्मे
मुझे जनम-जनम भटकाने को//............ न पंक्तियों में अर्थ के सापेक्ष व्याकरणिक त्रुटी है... 'भटकाने दो' पर पुनः विचार कीजिये 

शुभेच्छाएं 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 10, 2014 at 8:41am

आ, हरि भाई , अपने ईश्वर से आपकी मासूम शिकायत के लिये बधाई ।

Comment by Hari Prakash Dubey on November 9, 2014 at 8:40am

Thanks a lot Umesh Katara Sir.

Comment by umesh katara on November 9, 2014 at 8:20am

beutiful waaaaaaah

Comment by Chhaya Shukla on November 8, 2014 at 9:15pm

आ. हरी प्रकाश डूबे जी
अभिवादन
कविता का प्रवाह और प्रभु से शिकायत का अंदाज़ अनुपम अनुभूति कराया बहुत बहुत बधाई लघु कविता के लिए सादर !

Comment by Hari Prakash Dubey on November 8, 2014 at 7:35pm

आपका हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 8, 2014 at 6:42pm

परेशानी में व्यथित मन तकदीर या भगवान् से शिकायत करता है ...बढ़िया लघु कविता ...बधाई आपको 

Comment by Hari Prakash Dubey on November 8, 2014 at 12:03pm
आपका हार्दिक आभार, आदरणीय अरुण जी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on November 7, 2014 at 10:58pm
आदरणीय हरिप्रकाश जी, भावपूर्ण कविया के लिये बधाई.........

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
1 hour ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
3 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय,  मिथिलेश वामनकर जी एवं आदरणीय  लक्ष्मण धामी…"
4 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Wednesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Nov 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service