"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
परिस्थितिजन्य नैराश्य के चलते ईश्वर के समक्ष व्याकुल मन के भाव प्रस्तुत करने का सुन्दर प्रयास
हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति पर
//स्वयं बने रहो अजन्मे
मुझे जनम-जनम भटकाने को//............ न पंक्तियों में अर्थ के सापेक्ष व्याकरणिक त्रुटी है... 'भटकाने दो' पर पुनः विचार कीजिये
शुभेच्छाएं
आ, हरि भाई , अपने ईश्वर से आपकी मासूम शिकायत के लिये बधाई ।
Thanks a lot Umesh Katara Sir.
beutiful waaaaaaah
आ. हरी प्रकाश डूबे जी
अभिवादन
कविता का प्रवाह और प्रभु से शिकायत का अंदाज़ अनुपम अनुभूति कराया बहुत बहुत बधाई लघु कविता के लिए सादर !
आपका हार्दिक आभार
परेशानी में व्यथित मन तकदीर या भगवान् से शिकायत करता है ...बढ़िया लघु कविता ...बधाई आपको
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