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अपने जज्बात दिखाओ तो क्या बात हो
खुल के हर बात बताओ तो क्या बात हो

सभी ने दिन में हैं तारे ही दिखाये मुझको
तुम कभी चाँद दिखाओ तो क्या बात हो

वो अकेला ही चल पड़ा राहे-सच्चाई
दो कदम साथ मिलाओ तो क्या बात हो

मेरे जज्बात से वाकिफ, अभी भी मेरी कलम
नोक से नाम हटाओ तो क्या बात हो

हर गली मोड़ पर घूरे तुम्हे गुस्ताख नजर
हर दफा पर्दे में आओ तो क्या बात हो

तुने गुल्जार किये हैं कई गरीबों के महल
मेरे घर को भी सजाओ तो क्या बात हो

घड़ी भर साथ निभाने को बहुत हैं अपने
उम्र भर साथ निभाओ तो क्या बात हो

"मौलिक व अप्रकाशित" 

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Comment

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Comment by Pawan Kumar on October 8, 2014 at 1:54pm
आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर अभिवादन, मार्गदर्शन हेतु बहुत बहुत धन्यवाद!
Comment by Pawan Kumar on October 8, 2014 at 1:49pm

आदरणीय डा0 विजय शंकर जी सादर अभिवादन, , प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 7, 2014 at 7:51pm

अच्छा प्रयास है ..इसे बह्र में साधो तो क्या बात हो .....

बधाई आपको 

Comment by Dr. Vijai Shanker on October 7, 2014 at 10:12am
प्रयास अच्छा है , बधाई , आo पवन कुमार जी .

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