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“भाभी, अगर कल तक मेरी राखी की पोस्ट आप तक नहीं पँहुची तो परसों मैं आपके यहाँ आ रही हूँ  भैया से कह देना ” कह कर रीना ने फोन रख दिया|

अगले दिन भाभी ने सुबह ११ बजे ही फोन करके कहा, "रीना राखी पहुँच गई है ”

"पर भाभी मैंने तो इस बार राखी पोस्ट ही नहीं की थी !!! "


(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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Comment by rajesh kumari on August 5, 2016 at 7:17pm

हाँ राहिला जी ,ये मेरी  ही लघु कथा है पिछले साल भी किसी ने बताया था की आपकी लघु कथा बिना आपके नाम के कई जगह देखी गई

इस बार तो घूम घाम कर मेरे ही पास आ गई व्हाट्स अप पर :)))))))  ये  तो  अच्छा  है ओबिओ पर डेट और टाइम पड़ा रहता है पब्लिश होने के वक़्त |

आपका बहुत- बहुत शुक्रिया  

Comment by Rahila on August 5, 2016 at 10:01am
ओह आदरणीया दीदी! ये आपकी रचना है! मेरे पास भी व्हाट्स एप्प पर परसों पहुंची ।और इस पर बेहद मजेदार प्रतिक्रिया थी ग्रुप के लोगों की।बहुत बधाई दीदी!इस शानदार पॉपुलर रचना के लिये।सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 4, 2016 at 10:27pm

आद० शेख़ उस्मानी जी, दो साल पुरानी इस लघु कथा पर किसी वजह से आज  आना हुआ आपने  इस लघु कथा पर शिरकत की तथा सराहना की इस लघु कथा का मान और बढ़ गया आपका तहे दिल से आभार |

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 4, 2016 at 10:22pm
बेहतरीन लघु लघुकथा दीर्घ प्रभाव छोड़ती। रिश्तों की तह तक पहुंचाती भाव पूर्ण प्रस्तुति के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीया राजेश कुमारी जी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 4, 2016 at 9:29pm

सीमा जी ,आज  ये  लघु कथा घूमती हुई व्हाट्स अप पर मेरे ही पास आ गई चोरी की इन्तहा देखिये मेरा नाम भी डाला होता तो ख़ुशी होती |इसी बहाने आज इतने दिन बाद आपकी प्रतिक्रिया इस लघु कथा पर पढ़ी बहुत अच्छा  लगा हार्दिक आभार आपका |

Comment by seemahari sharma on September 2, 2014 at 11:34pm
बहुत कम शब्दों में बड़ी बात कहना कुछ मुश्किल होता है जो आपकी लघु कथा में बहुत आसानी से हुआ है बहुत बहुत बधाई राजेश कुमारी जी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 2, 2014 at 7:28pm

बहुत- बहुत हार्दिक आभार महेश्वरी कनेरी जी. 

Comment by Maheshwari Kaneri on September 2, 2014 at 6:00pm

बहुत सुंदर व्यंग्यात्मक लघु कथा ,  बधाई ;राजेश  जी,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 23, 2014 at 9:49pm

आ० कल्पना रामानी जी ,आपको ये लघु कथा पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ ,हार्दिक आभार आपका |

Comment by कल्पना रामानी on August 23, 2014 at 9:22pm

आजकल के परिवारों में यह सब आम हो गया है। कसी हुई शैली में अति सुंदर लघुकथा के लिए आपको ढेरों बधाइयाँ प्रिय राजेश कुमारी जी,

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