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मुक्ति- बंधन //कुशवाहा //

मुक्ति- बंधन //कुशवाहा //
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पिंजरे में कैद पंछी
निहारता आसमान को
बाहर आने को बेताब
बंधन
अस्वीकार्य


दीवार को पकड
इधर उधर
झांकता
राश्ते की तलाश
आसान नही
मुक्ति/ बंधन


क्रोधित असहाय
चिल्लाता
घायल बदन / घायल आत्मा
छिपता भी तो नहीं
रिसता लहू
गवाह
जंग- ए- आजादी का


खिसियाहट झल्लाहट
बेबसी
फडफडाहट
गति देती
उड़ जाने को
जिंदगी भी तों इस से
इतर नही ?

प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
०५-०५-२०१४
मौलिक /अप्रकाशित

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Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on August 4, 2014 at 3:14pm

सादर आभार प्रोत्साहन हेतु 

आदरणीया राजेश कुमारी जी 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on August 4, 2014 at 3:13pm

परम सनेही जीतेन्द्र जी 

सादर आभार प्रोत्साहन हेतु. 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on August 4, 2014 at 3:06pm

समर्थन हेतु आभार आदरणीय सिंह साहब जी 

सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 4, 2014 at 10:55am

कैद किसको पसंद है ,चाहे इंसा हो या परिंदा हर कोई मुक्ति चाहता है उसके लिए हर कोई प्रयास करता है 

खिसियाहट झल्लाहट 
बेबसी 
फडफडाहट 
गति देती 
उड़ जाने को 
जिंदगी भी तों इस से 
इतर नही ?---सच कहा ...जिन्दगी की गतिशीलता मुक्ति में ही है 

सुन्दर प्रस्तुति ..बहुत बहुत बधाई आ० प्रदीप कुशवाह जी 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 4, 2014 at 9:36am

बहुत प्रभावशाली रचना प्रस्तुति आदरणीय प्रदीप जी, आपको हार्दिक बधाई

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 3, 2014 at 8:09pm

खिसियाहट झल्लाहट 
बेबसी 
फडफडाहट 
गति देती 
उड़ जाने को 
जिंदगी भी तों इस से 
इतर नही ?

निश्चय ही!

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