For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")


इस पार आ रहे हैं कुछ जाने माने लोग
उस पार जा रहे हैं कुछ जाने माने लोग
कैसी है राम राम ये कैसी सलाम है
पहचान नहीं पा रहे कुछ जाने माने लोग

फिर कई सूत्र नयी धुन के रुई निकले हैं
तंग कुर्ते पतंग लहँगे हैं
गली आवाज़ एक नंगी गली से आयी
देह सस्ती है वस्त्र महँगे हैं

कीमती वक्त खोते जा रहे हो
बिना मौसम के होते जा रहे हो
कोई जलधार थमे पानी से कह आयेगी
क्यों किनारे पै गोते खा रहे हो

इन अकउवोँ की कली में बैठ कर
राज मधुवन की कली के खोलना मत
ढोल हैं ये भांगड़ा के नृत्य हैं
शास्त्र के संगीत के स्वर छेड़ना मत

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 521

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 4, 2014 at 12:26pm

वैचारिकता को सुन्दर शब्द देने का प्रयास हुआ है.  बधाई !

किन्तु, शाब्दिक होने में तनिक और गहनता की अपेक्षा थी. जैसे विचार, वैसे शब्द ! तो फिर वैसा ही संयोजन भी होना चाहिये.
मुक्तकों का अपना विन्यास होता है, यह हमसभी जानते हैं, आदरणीय. आपके पिछले मुक्तक देख चुका हूँ, आदरणीय. अतः समवेत में कह पा रहा हूँ. इस बार के मुक्तक आज़ाद हैं.

फिर कई सूत्र नयी धुन के रुई निकले हैं .. रुई पुल्लिंग बहुवचन का ब्यौरा समझ में नहीं आया, आदरणीय. महती कृपा होगी यदि स्पष्ट हो पाया.
सादर
 

Comment by Alka Gupta on August 2, 2014 at 5:31pm

वाह्ह्ह्हह्ह्ह्ह अति सुन्दर सभी मुक्तक ..सादर वन्दे 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 2, 2014 at 10:12am

आदरणीय प्रेम नारायण भाई , लाजवाब मुक्तक के लिए बधाइयाँ |

फिर कई सूत्र नयी धुन के रुई निकले हैं
तंग कुर्ते पतंग लहँगे हैं
गली आवाज़ एक नंगी गली से आयी
देह सस्ती है वस्त्र महँगे हैं   ------------ अति सुन्दर !

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 1, 2014 at 6:31pm

गहरी सोच उभर कर आई है आपके मुक्तक में रचित भाव से -

जाने माने लोग भी एक दुसरे के समुख से गुर्जर रहे है पर पहचान नहीं रहे है - वाह ! 

देह सस्ती है वस्त्र महंगे है - अब तो कास्ट्यूम भी खूब महंगे हो गए, - बहुत खूब लाजवाब तंज कसा है

 

चरों मुक्तक सुंदर लगे | बहुत बहुत बधाई पं प्रेम नारायण दीक्षित जी 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 1, 2014 at 11:22am

प्रेमजी

आपके मुक्तक  सुंदर है और उत्कृष्ट भी  पर निगूढ़  है  i सामान्य पाठक केलिए तो बाउंसर  हैं  i मै तो आपकी लेखनी को प्रणाम करूंगा i

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"जी, कुछ और प्रयास करने का अवसर मिलेगा। सादर.."
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"क्या उचित न होगा, कि, अगले आयोजन में हम सभी पुनः इसी छंद पर कार्य करें..  आप सभी की अनुमति…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय.  मैं प्रथम पद के अंतिम चरण की ओर इंगित कर रहा था. ..  कभी कहीं…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
""किंतु कहूँ एक बात, आदरणीय आपसे, कहीं-कहीं पंक्तियों के अर्थ में दुराव है".... जी!…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"जी जी .. हा हा हा ..  सादर"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य आदरणीय.. "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी  प्रयास पर आपकी उपस्थिति और मार्गदर्शन मिला..हार्दिक आभारआपका //जानिए कि रचना…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।छंदो पर उपस्थिति, स्नेह व मार्गदर्शन के लिए आभार। इस पर पुनः प्रयास…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। छंदो पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन।छंदों पर उपस्थिति उत्तसाहवर्धन और सुझाव के लिए आभार। प्रयास रहेगा कि…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"हर्दिक धन्यवाद, आदरणीय.. "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह वाह ..  दूसरा प्रयास है ये, बढिया अभ्यास है ये, बिम्ब और साधना का सुन्दर बहाव…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service