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चुभें ये अगर साफ़ बातें मेरी (ग़ज़ल 'राज')

१२२  १२२  १२२  १२

 

जहाँ  गलतियाँ हों बता दें मेरी

चुभें  ये  अगर साफ़ बातें मेरी

 

तुम्हें जिन्दगी दी तो हक़ भी मिला

तुम्हारे कदम पे निगाहें  मेरी

 

हर इक मोड़ पर तुम मुझे पाओगे

नहीं हैं जुदा तुमसे राहें  मेरी

 

तुम्हें नींद आती नहीं है अगर

कहाँ फिर कटेंगी ये रातें मेरी

 

छुपा क्या सकोगे जबीं की शिकन

हमेशा पढ़ेंगी ये आँखें मेरी

 

तुम्हारी हिफ़ाज़त करूँ जब तलक

चलेंगी तभी तक ये साँसें मेरी

 

नहीं आज तुम कुछ समझ पाओगे 

समझ जाओगे कल ये बातें मेरी

 

नसीहत लगें आज तुमको फ़कत

समझना इन्हें कल दुआएँ मेरी

-------------------------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 16, 2014 at 11:34am

तहे दिल से आभारी हूँ मिथिलेश जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ पाठक़ की संतुष्टि भरी प्रतिक्रिया लेखक़ की कलम की संजीवनी हुआ करती है बहुत बहुत शुक्रिया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 16, 2014 at 12:43am

जहाँ  गलतियाँ हों बता दें मेरी

चुभें  ये  अगर साफ़ बातें मेरी -------बेहतरीन मतला 

 

तुम्हें जिन्दगी दी तो हक़ भी मिला

तुम्हारे कदम पे निगाहें  मेरी..........बेहतरीन शेर 

 

 

छुपा क्या सकोगे जबीं की शिकन

हमेशा पढ़ेंगी ये आँखें मेरी .........क्या बात है ... कमाल का शेर 

 

तुम्हारी हिफ़ाज़त करूँ जब तलक

चलेंगी तभी तक ये साँसें मेरी..............बहुत बढ़िया अशआर 

 

नसीहत लगें आज तुमको फ़कत

समझना इन्हें कल दुआएँ मेरी......बेहतरीन और उम्दा शेर ....दिल से दाद ......

आपकी नसीहत हमेशा हम नौसिखियों के लिए दुआएँ है ............ उम्दा ग़ज़ल का उम्दा शेर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 27, 2014 at 7:14pm

आ० विजय निकोर जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ तहे दिल से आभारी हूँ |

Comment by vijay nikore on July 27, 2014 at 5:13pm

बहुत ही अच्छे अशआर हैं। हार्दिक बधाई, आदरणीया राजेश जी।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 25, 2014 at 8:47pm

कल्पना मिश्रा जी ,आपकी प्रतिक्रिया से अभिभूत हूँ ,आपने मेरे लेखन /ग़ज़ल को इतना मान दिया तहे दिल से आभारी हूँ |

Comment by kalpna mishra bajpai on July 24, 2014 at 9:08pm

मैडम आप ने ये गजल लिखने का हुनर कहाँ से सीखा है । अति लुभावनी गजलों से रु-ब -रु करती है बहुत बधाई /सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 24, 2014 at 4:24pm

आ० गिरिराज भंडारी जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका  अनुमोदन  उत्साह वर्धन के साथ आश्वस्ति का कारण भी हुआ कि मेरा लिखना सार्थक हुआ हृदय से आभार आपका |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 24, 2014 at 4:22pm

नरेंद्र सिंह चौहान जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई इस होंसलाफ्जाई का दिल से शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 24, 2014 at 4:20pm

आ० सौरभ जी ,ग़ज़ल पर क्या किसी भी रचना पर आपकी न्यायसंगत प्रतिक्रिया आश्वासन अथवा मार्गदर्शन का सबब हुआ करती हैं पढ़कर हर्ष हुआ कि अशआर आपको प्रभावित कर सके मेरा लिखना सार्थक हुआ तहे दिल से आभारी हूँ सादर |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 24, 2014 at 3:08pm

कहीं गलतियाँ हों बता दें मेरी

चुभेंगी अगर तुमको बातें मेरी

तुम्हें नींद आती नहीं है अगर

कहाँ फिर कटेंगी ये रातें मेरी  ----- आदरणीया खूब सूरत गज़ल , और इन दो अश आर के लिये आपको बधाइयाँ ॥

 

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