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उदास मां को एक बेटा हंसा के निकला है..

उदास मां को एक बेटा हंसा के निकला है

अंधेरे घर में वो दीपक जला के निकला है,

पानी गर्म था इसलिए ये खयाल आया,
इस समंदर से तो सूरज नहा के निकला है,

.

जमीं पर दिन के उजाले में उसको देखा था
रात में देखा तो चांद आसमां से निकला है,

वहां पर आज तक सोना कभी नहीं निकला
जहां खोदा गया पानी वहां से निकला है,

उनको देखा तो कायनात मुझसे पूछ उठी
अतुल इतना हसीं 'मौसम' कहां से निकला है।।

- मौलिक व अप्रकाशित

— अतुल

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Comment by गिरिराज भंडारी on July 9, 2014 at 10:30am

आदरनीय , खयाल अच्छा है , आपको बधाइयाँ । अगर आपने गज़ल कही है तो , बह्र मै समझ नही पाया , क्षमा करें !

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 8, 2014 at 11:42am

अतुल जी इस ग़ज़ल के लिए बधाई ..खास रूप से इस शेर के लिए पानी गर्म था इसलिए ये खयाल आया,
इस समंदर से तो सूरज नहा के निकला है,...सादर बधाई के साथ 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 8, 2014 at 10:13am

अतुल जी ..
नीचे दी हुई लिंक पर गौर कीजिये ...बहुत सी महत्वपूर्ण बातें सीखने को मिलेंगी .
सादर 
http://www.openbooksonline.com/group/kaksha/forum/topics/5170231:To...

Comment by वेदिका on July 8, 2014 at 9:27am

सुन्दर ख्यालात प्रस्तुत किये|

क्या यह गजल है? रचना पर बधाई प्रेषित है अ० अतुल जी! 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on July 8, 2014 at 9:22am

शानदार गज़ल के लिये बधाइयाँ आदरणीय अतुल जी,

पानी गर्म था इसलिए ये खयाल आया,
इस समंदर से तो सूरज नहा के निकला है,

.

वाह !!!!!!!!!!!!!

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