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दुष्ट दुर्जन पशु बराबर हो गए,
आज कल इंसान पत्थर हो गए,

क़त्ल चोरी रेप दंगो के विषय,
सुर्ख़ियों में आज ऊपर हो गए,

स्वार्थ से कोमल ह्रदय को सींचकर,
प्रेम से वंचित हो ऊसर हो गए,

अंततः जब सत्य मैंने कह दिया,
प्राण लेने को वो तत्पर हो गए,

ढह गई दीवार आदर भाव की,
प्रेम के आवास खँडहर हो गए,

पथ प्रदर्शक जो कभी थे साथ में,
राह में वो आज ठोकर हो गए,

जो समय के साथ चलते हैं नहीं,
एक दिन वो बद से बदतर हो गए.

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by Ravi Prabhakar on July 7, 2014 at 6:22pm

आदरणीय अरून भाई,
बहुत उम्दा ग़ज़ल कही आपने।

/दुष्ट दुर्जन पशु बराबर हो गए,
आज कल इंसान पत्थर हो गए/
बिल्कुल ठीक चित्रण किया, इंसान वाकई में आज पत्थर का हो कर रह गया है। संवेदना क्षीण हो रही है आजकल।

/अंततः जब सत्य मैंने कह दिया,
प्राण लेने को वो तत्पर हो गए/
सत्य लुप्त होता जा रहा है हर तरफ झूठ और बुराई का ही बोलबाला होता जा रहा है। गुरूवाणी में इसे “कूड़ फिरै प्रधानु”
कह कर बताया गया है।

/पथ प्रदर्शक जो कभी साथ में,
राह में वो आज ठोकर हो गए/
यह शेयर तो आजकल की युवा पीढ़ी पर बिल्कुल फिट बैठता है, जिस माँ-बाप ने उन्हे जीवन में आगे बढ़ना सिखाया उन्हे वे
अपनी राह में रोड़ा समझते है।

/जो समय के साथ चलते हैं नहीं,
एक दिन वे बद से बदतर हो गए/
कालचक्र की शक्ति को दर्शाता सबसे उम्दा शेयर। वाकई जो समय के साथ नहीं चलता वो एक दिन चलने के लायक ही नहीं रहता।

दिल से बधाई संप्रेषित है, स्वीकार करें।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 7, 2014 at 5:53pm

बहुत सुंदर ग़ज़ल हुई है ..
बधाई 

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