For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कहाँ होती मुहब्बत और कैसी कुर्बतें होतीं (ग़ज़ल 'राज')

1222   1222   1222   1222

जुबाँ से विष उगलते और मन में नफरतें होतीं

 न तू होता अगर दिल  में न तेरी रहमतें होतीं

 

नहीं जीवन बनाता तू धड़कता फिर कहाँ से दिल

न कोई ख़्वाब ही पलते  न कोई हसरतें होतीं  

 

जो तेरे  हाथ शानों पर नहीं होते अगर मेरे   

कहाँ से  होंसला होता कहाँ  ये हिम्मतें होतीं  

 

बिना मतलब यहाँ तो पेड़ से पत्ता नहीं हिलता

ज़माना साथ क्या देता बड़ी ही जिल्लतें होतीं  

 

न तुझ में  आस्था होती न तेरा डर अगर होता

कहाँ होती मुहब्बत और कैसी कुर्बतें   होतीं  

 

बड़ा अच्छा किया कद अर्श को ऊँचा दिया तूने   

नहीं तो बंट चुका होता लगा दी  कीमतें होतीं 

 

तेरी पाकीजगी, कमसिन ज़िया को  लूट लेते सब

सितारों चाँद सूरज की दरकती अस्मतें होतीं   

 

कज़ा की डोर हाथों में नहीं लेता अगर मालिक  

अमर होती कहर ढ़ाती विषैली ताकतें होतीं

(मौलिक एवं अप्रकाशित ) 

Views: 910

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 1, 2014 at 9:51am

ब्रिजेश भैय्या ,ग़ज़ल आपको पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभारी हूँ |

Comment by बृजेश नीरज on June 30, 2014 at 11:34pm
बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल। आपको बहुत बधाई आदरणीया।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 30, 2014 at 9:43pm

शिज्जू भाई, ग़ज़ल पर जब कोई सुलझा हुआ  ग़ज़लकार प्रतिक्रिया देता है तो उसके मायने बहुत ख़ास होते हैं ग़ज़ल पर आपकी सराहना पाकर मैं संतुष्ट हो रही हूँ कि अशआर अपने स्पष्ट प्रभाव छोड़ सके हैं ,तहे दिल से आभारी हूँ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on June 30, 2014 at 9:34pm

आदरणीया राजेश दीदी वैसे तो पूरी ग़ज़ल अच्छी लगी मगर इन अशआर ने तो कमाल कर दिया बहुत बढ़िया दिली दाद कुबूल फरमाएँ।

नहीं जीवन बनाता तू धड़कता फिर कहाँ से दिल

न कोई ख़्वाब ही पलते  न कोई हसरतें होतीं  

 

जो तेरे  हाथ शानों पर नहीं होते अगर मेरे   

कहाँ से  होंसला होता कहाँ  ये हिम्मतें होतीं  

बड़ा अच्छा किया कद अर्श को ऊँचा दिया तूने   

नहीं तो बंट चुका होता लगा दी  कीमतें होतीं 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 30, 2014 at 8:53pm

आ० गिरिराज जी,ग़ज़ल को आप जैसे गंभीर सुलझे हुए ग़ज़ल कार का आशीष प्राप्त हुआ और क्या चाहिए|ह्रदय तल से आभार आपका|    


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 30, 2014 at 6:12pm

आदरनीया राजेश जी , बेहद खूबसूरत , कामयाब गज़ल कही आपने , हर शे र अपने आप मे पूरा है , जो आपने पहुँचाना चाहा सीधे दिल तक पहुँचा ॥ हर एक अशआर के लिये ढेरों दाद कुबूल कीजिये ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 30, 2014 at 5:46pm

आ० नीलेश जी ,आप जैसे सुलझे हुए ग़ज़ल कार से सराहना पाना ग़ज़ल को सार्थक बनाने के साथ आश्वस्त होने का कारण भी बनता है ,आपकी प्रतिक्रिया तहे दिल से स्वीकार और बहुत- बहुत आभार. 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 30, 2014 at 5:41pm

बहुत खूब ग़ज़ल हुई है ..हर शेर दुसरे से बढ़कर है ..
बहुत बहुत बधाई इस ग़ज़ल के लिए ..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 30, 2014 at 5:36pm

आ० एडमिन जी, ग़ज़ल को फीचर करने हेतु दिल से लख- लख आभार| 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 30, 2014 at 5:35pm

आ० डॉ गोपाल नारायण जी ,ग़ज़ल  आपकी उपस्थिति और सराहना सिक्त प्रतिक्रिया से धन्य हुई ,तहे दिल से आभारी हूँ |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण भाईजी, आपने प्रदत्त चित्र के मर्म को समझा और तदनुरूप आपने भाव को शाब्दिक भी…"
1 hour ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"  सरसी छंद  : हार हताशा छुपा रहे हैं, मोर   मचाते  शोर । व्यर्थ पीटते…"
6 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे परिवेश। शत्रु बोध यदि नहीं हुआ तो, पछताएगा…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
22 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Dec 14
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service