(सभी गुरुजनों की समीक्षार्थ ... सादर -)
चिंता चित पर ज्यों चढ़े, पल-पल मन झुलसाय|
चिंता रथ पर जो चढ़े, चिता तलक पहुँचाय ||
चिता तलक पहुँचाय , रहे तन छिन-छिन घुलता |
छिने दिमागी चैन , नींद से वंचित फिरता ||
देत न कोय उपाय, सुख व सेहत की हंता |
करें चिंतन सदैव, करें न कभी भी चिंता ||
.
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
बहुत सुंदर.हार्दिक बधाई शालिनी जी
आदरणीया शालिनी जी
कुण्डलिया छंद पर सार्थक कथ्य को प्रस्तुत करने का सुन्दर प्रयास हुआ है..और मात्रिकता निर्वहन भी सम्यक हुआ है...इस पर आपको बहुत बहुत बधाई
लेकिन प्रस्तुति की शैली के साथ झुलसाय पहुँचाय देत कोय जैसे आंचलिक शब्द आरोपित से लग रहे हैं..जिनसे बचा जा सकता था
साथ ही शब्द समुच्चयों में आतंरिक व्यस्था पर भी कुछ और कसावट की ज़रुरत है..
http://www.openbooksonline.com/group/chhand/forum/topics/5170231:To...
इस लिंक पर शब्द संयोजन के विन्यास को पुनः अवश्य ही देखें
शुभकामनाएं
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी , आपका अनुमोदन मेरे लिए गर्व का विषय है .. मार्गदर्शन बनाए रखिये ..
उत्साह वर्द्धन के लिए आभार coontee mukerji जी एवं जितेन्द्र 'गीत' जी
आज के इस आपा-धापी वाले समय में सिर्फ चिंताएं ही रह गई है, बहुत अच्छा सन्देश देती रचना. बधाई स्वीकारें आदरणीया शालिनी जी
बहुत सुंदर.....हार्दिक बधाई.
आदरनीया शालिनि जी , सुन्दर सार्थक संदेश देती कुन्दलिया रचना के लिये बधाइयाँ ।
धन्यवाद आदरणीय Laxman Prasad Ladiwala जी .. आपका सुझाव बहुत उपयुक्त है .. आगे भी मार्गदर्शन की अभिलाषा है .. सधन्यवाद !
सार्थक सन्देश देती कुंडलिया छंद के प्रयास हेतु बधाई | कुछ शब्द लय की द्रष्टि से ठीक किये जा सकते है | जैसे -
करें चिंतन सदैव की जगह - "चिंतन करे सदैव" अधिक उपयुक्त रहेगा
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