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कुंडलिया छंद - लक्ष्मण लडीवाला

कुंडलिया छंद- समाज और बेटियाँ 
(1)
सक्षम बेटी वधु बने, वधुएँ घर की लाज 
वंश बढ़ाती कोख से, हर घर करता नाज 
हर घर करता नाज, मिले जब ढेरों खुशियाँ 
जागे सकल समाज, सृजन से महके बगिया 
त्यागे बाल विवाह, अपराध है ये अक्षम 
करे पढ़ाकर ब्याह, बने समाज तब सक्षम ||
(2)

बेटी बिन क्या हो सके, विकसित कभी समाज 

बेटी आती है सदा,  लिए प्यार  का साज 
लिए प्यार का साज, हाथ दूजे का थामे 
बढे जगत की बेल, दर्द सहती जो गामे 
हो सबकी यह सोच,खुले विकास की पेटी 
तज कर नेह कुटीर, जुड़े विकास में बेटी |
(3)

दुनिया के उत्थान में, बेटी है वरदान,

बेटी जन्मी कोख से, करते कन्यादान 

करते कन्यादान, प्रेम से उसे पढाए 

उत्कट जीवन चाह, स्नेह दे मान बढाए 

कह लक्ष्मण कविराय, यही विकास का जरिया

बेटी का उत्थान, तभी हो विकसित दुनिया || 

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 7, 2014 at 7:07pm

जी, यह चिंता का विषय मै मेरे लिए अधिक मानता हूँ और अधिक सावचेत रहने का प्रयास करूंगा | सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 7, 2014 at 6:59pm

आदरणीय लक्ष्मण प्रसादजी, cause of concern की दुहाई आपके प्रति नहीं, बल्कि इस प्रस्तुति के पाठकों के लिए थी. आपकी स्वीकारोक्ति ने मेरे कहे को इज़्ज़त दी, आपने उबार लिया.

वैसे आप रचनाओं को प्रस्तुत करते समय तनिक सचेत रहें तो सारी परेशानी दूर हो गयी समझिये.

सादर

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 7, 2014 at 6:52pm

स्वीकारोक्ति -

No doubt Sir, it is a cause of concern. It is a weakness on my part. यह कमी मै अभी तक दूर नहीं कर पाया 

और देर सवेर पता लगता है तब तक काला टीका लगा हो चुका होता है | और सचेत रहने का प्रयास करूंगा आदरणीय |

सादर  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 7, 2014 at 12:47pm

आप आदरणीय अपनी ही रचनाओं को नहीं देखते अब पता चला है. अन्यथा कोई कैसे संशोधन के लिए इतने समय तक किसी टिप्पणी की प्रतीक्षा कर सकता है ? ऐसे विन्दु तो रचनाओं को पोस्ट करते समय ही दिख जाते हैं.

मजा ये कि किसी टिप्पणीकार ने आपको इसकी ओर अगाह भी नहीं किया..  Cause of concern.. है न आदरणीय ?

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 7, 2014 at 12:34pm

आपका हार्दिक आभार आदरणीय श्री सौरभ पाण्डेय जी | आखिरी छंद पर ध्यान दिलाने के लिए आभार | संशोधित छंद 

अवलोकनार्थ प्रस्तुत है -

दुनिया के उत्थान में, बेटी है वरदान,

बेटी जन्मी कोख से, करते कन्यादान 

करते कन्यादान, प्रेम से उसे पढाए 

उत्कट जीवन चाह, स्नेह दे मान बढाए 

कह लक्ष्मण कविराय, यही विकास का जरिया

बेटी का उत्थान, तभी हो विकसित दुनिया |--------सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 7, 2014 at 12:05am

शुभ संदेश देती रचना के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय.

अलबत्ता, आखिरी छन्द शास्त्रीय कुण्डलिया छन्द  नहीं रह पाया है.

शुभ-शुभ

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 23, 2014 at 10:20am

छंद पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार श्री जितेन्द्र "गीत" जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 22, 2014 at 10:37am

कुंडलिया छंद सन्देश प्रद बन पायी, यह जानकार संतोष हुआ ! आपका तहे दिल से हार्दिक आभार श्री गिरिराज भंडारी जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 22, 2014 at 10:35am

छंद पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार आदनिया मीना पाठक जी 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 22, 2014 at 10:18am

सुंदर संदेशप्रद रचना, बधाई आदरणीय लक्ष्मण जी

कृपया ध्यान दे...

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