For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कतरा कतरा बन

जि़न्दगी गिरती रही

हर लम्हों को मैं

यादों में सहेजती रही

अनमना मन मुझसे

क्या मांगे,पता नहीं

पर हर घड़ी धूप सी

मैं ढलती रही

रात, उदासी की चादर

 ओढा़ने को तत्पर बहुत

पर मैं

चाँद में अपनी

खुशियाँ तलाशती रही

और चाँदनी सी

 खिलखिलाती रही

****************

महेश्वरी कनेरी

अप्रकाशित /मौलिक

Views: 620

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on June 20, 2014 at 8:38am

सुन्दर रचना के लिए बधाई, आदरणीया महेश्वरी जी।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 19, 2014 at 8:23am

रचना के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीया..

वैसे पता नहीं चला, इस रचना को गीत का स्वरूप क्यों नहीं दिया आपने..

Comment by Maheshwari Kaneri on June 18, 2014 at 1:09pm

 लम्हों का सही प्रयोग दर्शाने  हेतु  आप का बहुत बहुत आभार ..आगे भी इसी तरह मार्ग दर्शित करती रहे तो मुझे बहुत खुशी होगी.. पुन: धन्यवाद प्राची जी आप का...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 16, 2014 at 9:47pm

ज़िन्दगी यूँ ही चलती जाती है..हम लम्हे सहेजते रह जाते हैं.... और सार्थक जीना तो वही है...की चाँद में खुशिया खोजते हुए खुद ही चांदनी से सराबोर खिलखिलाते रहना...सुन्दर सकारात्मक भाव आकी प्रस्तुति का आ० महेश्वरी जी 

हर लम्हों वस्तुतः गलत प्रयोग है.....यहाँ हर लम्हे को मैं यादों में सहेजती रही ऐसा ही होना चाहिए.

इस सुन्दर रचना पर मेरी हार्दिक बधाई प्रेषित है..स्वीकार कीजिये 

सस्नेह 

Comment by विजय मिश्र on June 16, 2014 at 5:42pm
उँगलियों के पोर से रिसते हुए रेट सी है जिंदगी ,बार-बार उठाओ ,बार-बार रीस जायेगी ,आ० कनेरीजी ! सचमुच आशा की डोर थामे ही हम जी जाते हैं | बहुत सुंदर ,साधुवाद |
Comment by Maheshwari Kaneri on June 13, 2014 at 7:22pm

हौसला अफजाई के लिए आप सभी का बहुत बहुत आभार..

Comment by annapurna bajpai on June 12, 2014 at 7:50pm

छोटी एवं सार्थक रचना , आ0 माहेश्वरी जी , बधाई  । 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 12, 2014 at 6:13pm

आदरणीया महेश्वरी जी , सुन्दर आशावादी विचारों के लिये अपको बधाइयाँ !

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 12, 2014 at 11:28am

एक आशावादी रचना के लिए बहुत बहुत बधाई ल आ० महेस्वरी जी l

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 11, 2014 at 7:19pm

महनीया

आपके आशावाद को प्रणाम

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
9 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
15 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"कौन है कसौटी पर? (लघुकथा): विकासशील देश का लोकतंत्र अपने संविधान को छाती से लगाये देश के कौने-कौने…"
20 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"सादर नमस्कार। हार्दिक स्वागत आदरणीय दयाराम मेठानी साहिब।  आज की महत्वपूर्ण विषय पर गोष्ठी का…"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी , सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ.भाई आजी तमाम जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"विषय - आत्म सम्मान शीर्षक - गहरी चोट नीरज एक 14 वर्षीय बालक था। वह शहर के विख्यात वकील धर्म नारायण…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . . .

कुंडलिया. . .चमकी चाँदी  केश  में, कहे उम्र  का खेल । स्याह केश  लौटें  नहीं, खूब   लगाओ  तेल ।…See More
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सादर प्रणाम - सर सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post भादों की बारिश
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, आपकी लघुकविता का मामला समझ में नहीं आ रहा. आपकी पिछ्ली रचना पर भी मैंने…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति का यह लिहाज इसलिए पसंद नहीं आया कि यह रचना आपकी प्रिया विधा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . . .
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी कुण्डलिया छंद की विषयवस्तु रोचक ही नहीं, व्यापक भी है. यह आयुबोध अक्सर…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service