For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कुंडलिया छंद - लक्ष्मण लडीवाला

गांधी जी की कल्पना, हो सकती साकार, 

राम राज्य इस देश में, ले सकता आकार |

ले सकता आकार, करे सब मिल तैयारी

मन में हो संकल्प,नहीं फिर मुश्किल भारी

लक्ष्मण कर विश्वास,चले अब ऐसी आंधी

भ्रष्ट तंत्र हो नष्ट, तभी खुश होंगे गांधी ||

(4)

ऊँचा कद इंसान का, नहीं ह्रदय में भाव 
कागज़ खुशबू दे नहीं, दिखे नहीं सद्भाव | 
दिखे नहीं सद्भाव, स्नेह हिवडे से मिलता
नेह न बरसे भाव, प्यार फिर कैसे टिकता
लक्षमण करे न काम,तभी मस्तक हो नीचा 
माँ को आवे लाज, झुका सिर करे न ऊँचा |

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 580

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 24, 2014 at 9:47am

छंद पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आबार श्री श्याम नरेन वर्मा जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 24, 2014 at 9:46am

"मुझे लगता है  'लक्ष्मण करे विश्वास' में  टंकण त्रुटि है i" जी सही पकड़ की है आपने | कर शब्द की जगह सहवन से करे टंकित हो 

गया है | आपका हार्दिक आभार श्री (डॉ) गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी 

Comment by रमेश कुमार चौहान on May 23, 2014 at 10:08pm

सुंदर कुण्डलि के बधाई, श्रीवास्तवजी के सलाह को संज्ञान में लाना चाहिये । सादर

Comment by Shyam Narain Verma on May 23, 2014 at 5:58pm
सुन्दर कुंडलिया छंद रचना के लिए हार्दिक बधाई....
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 23, 2014 at 12:02pm

3244   32332

आदरणीय लड़ीवाला जी

मुझे लगता है  'लक्ष्मण करे विश्वास' में  टंकण त्रुटि है i यह 'लक्ष्मण कर विश्वास ' होना चाहिए  i  मान्यवर रोला के सम चरण का विन्यास दो प्रकार होता है i  3 +2 +4 +4  या 3 +2 +3 +3 +2 , आपने लिखा - चले विकास  की आंधी i  यहाँ विन्यास उचित नहीं लग रहा i आपका विन्यास 3 +3 या 4  है i  अगर इसे ' चले अब ऐसी आंधी ' कर दे तो 3 +2 +4 +4  विन्यास पूरा हो जायेगा  i पर मोदी का विकास यहाँ से हटाना होगा i आशा है आप इस कथन को अन्यथा नहीं लेंगे i 'समूह' में कुण्डलिया पर सौरभ जी का आलेख अवश्य पढ़े i सादर  i

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service