For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - हमारी बात उन्हें इतनी नागवार लगी

१२१२      ११२२      १२१२     ११२  

हमारी बात उन्हें इतनी नागवार लगी

गुलों की बात छिड़ी और उनको खार लगी

बहुत संभाल के हमने रखे थे पाँव मगर

जहां थे जख्म वहीं चोट बार-बार लगी

कदम कदम पे हिदायत मिली सफर में हमें

कदम कदम पे हमें ज़िंदगी उधार लगी

नहीं थी कद्र कभी मेरी हसरतों की उसे

ये और बात कि अब वो भी बेकरार लगी

मदद का हाथ नहीं एक भी उठा था मगर

अजीब दौर कि बस भीड़ बेशुमार लगी

संजू शब्दिता मौलिक व अप्रकाशित

Views: 1400

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by sanju shabdita on June 15, 2014 at 11:47am

आदरनिया गीतिका जी आपको सक्रिय देखना सुखद है । ग़ज़ल अनुमोदन हेतु आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।

Comment by sanju shabdita on June 15, 2014 at 11:43am

आदरणीय सौरभ सर मैं स्वयं इस ग़ज़ल पर देर से आने के लिए आपसे व सभी सुधिजनों से क्षमा चाहती हूँ । इलाहाबाद में न होने के कारण ऐसा हुआ । प्रस्तुत ग़ज़ल के प्रति  आप सभी का स्नेह देखकर मैं अभिभूत हूँ । आपने इस ग़ज़ल को आगामी गज़लों के लिए मानक कह कर इसका कद बढ़ा दिया है और मेरे समक्ष ज्यादा बेहतर करने की चुनौती भी खड़ी कर दी है । मैं इसके लिए आपका आभार व्यक्त करती हूँ ... आपकी टिप्पणियाँ सदैव ही मुझे अच्छा करने के लिए प्रेरित करती हैं ...

Comment by sanju shabdita on June 15, 2014 at 11:32am

आदरनिया अन्नपूर्णा  जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by sanju shabdita on June 15, 2014 at 11:31am

आदरणीय वीनस जी ग़ज़ल पर आने हेतु आपका आभार । आपकी टिप्पणी का मुझे बेसब्री से इंतज़ार रहता है । आपका सुझाव अच्छा है पर उसे प्रयोग में लाने पर एक शेर  में तकाबुले -रदीफ़ की समस्या तो अन्य में काल भ्रम की स्थिति पैदा हो जाएगी । बहरहाल आपको ग़ज़ल शानदार लगी आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।

Comment by sanju shabdita on June 15, 2014 at 11:22am

आदरणीय देवराज जी , आदरणीय नीलेश जी ,आदरणीय लून करन जी आप सभी का हृदय से धन्यवाद

Comment by sanju shabdita on June 15, 2014 at 11:20am

आदरणीय नीरज नीर जी ,आदरनिया राजेश जी ,आदरणीय विजय निकोर जी ,आदरणीय रमेश सचदेव जी ग़ज़ल पर आप सभी की उपस्थिति मेरा हौंसला बढ़ा रही है । आप सभी की सहृदयता हेतु हार्दिक आभार व्यक्त करती हूँ .

Comment by sanju shabdita on June 15, 2014 at 11:14am

आदरणीय ram shiromani pathak जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by sanju shabdita on June 15, 2014 at 11:13am

आदरनिया सरिता जी आपको मेरी ग़ज़ल अच्छी लगती है ,यह मेरे लेखन की सार्थकता है । मैं आपकी सदाशयता से अभिभूत हूँ ।

मेरी ग़ज़ल कभी miss न करने के लिए आपका हृदय से आभार ।

Comment by वेदिका on June 15, 2014 at 4:39am
हमारी बात उन्हें इतनी नागवार लगी
गुलों की बात छिड़ी और उनको खार लगी//

लाजवाब कहन, गुलों की बात की भी और उनकी समझ की भी।
दिली दाद प्रेषित है, स्वीकारिये प्रिय संजू जी!
Comment by LOON KARAN CHHAJER on June 7, 2014 at 4:43pm

बहुत संभाल के हमने रखे थे पाँव मगर

जहां थे जख्म वहीं चोट बार-बार लगी

------संजू  जी बहुत  खूब लिखा  है आपने बधाई   .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
8 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
16 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
16 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, इस प्रस्तुति को समय देने और प्रशंसा के लिए हार्दिक dhanyavaad| "
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपने इस प्रस्तुति को वास्तव में आवश्यक समय दिया है. हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार…"
19 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी आपकी प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. वैसे आपका गीत भावों से समृद्ध है.…"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्र को साकार करते सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"सार छंद +++++++++ धोखेबाज पड़ोसी अपना, राम राम तो कहता।           …"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"भारती का लाड़ला है वो भारत रखवाला है ! उत्तुंग हिमालय सा ऊँचा,  उड़ता ध्वज तिरंगा  वीर…"
Friday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"शुक्रिया आदरणीय चेतन जी इस हौसला अफ़ज़ाई के लिए तीसरे का सानी स्पष्ट करने की कोशिश जारी है ताज में…"
Friday
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"संवेदनाहीन और क्रूरता का बखान भी कविता हो सकती है, पहली बार जाना !  औचित्य काव्य  / कविता…"
Friday
Chetan Prakash commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"अच्छी ग़ज़ल हुई, भाई  आज़ी तमाम! लेकिन तीसरे शे'र के सानी का भाव  स्पष्ट  नहीं…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service