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कुंडलिया छंद - लक्ष्मण लडीवाला

आँचल में ममता लिए, भरा ह्रदय में प्यार

क्या कोई भी दे सका,माँ सा प्यार दुलार

माँ सा प्यार दुलार, जिसे पाने को तरसे,

सर पर माँ जब हाथ,रखे तो प्रभु भी हरषे

कह लक्ष्मण मत टोक, लगाती टीका काजल

जीवन हो आबाद, मिले जब माँ का आँचल |

(2)

दोहा देखो छंद में,  सबका है  सरताज,

सभी शब्द हो शिल्प मय, तभी सजेगी साज

तभी सजेगी साज, छंद को गाकर देखे

मन में भरते भाव, सूर तुलसी के लेखे

लक्ष्मण ले आनंद, कबीर रचे वह मोहे

देना सबको मान, रचे जो लय में दोहे |

(मौलिक व् अप्रकाशित)

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Comment by ram shiromani pathak on May 15, 2014 at 5:23pm

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय लक्ष्मण जी ।बहुत बहुत बधाई आपको। सादर 

Comment by coontee mukerji on May 15, 2014 at 12:12am

बहुत सुंदर छ्न्द है.लक्ष्मणजी हार्दिक बधाई.

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on May 14, 2014 at 5:51pm

माँ की ममता में कुछ भी कहा जाय कम है  अच्छी कुण्डलियाँ 

Comment by Shyam Narain Verma on May 14, 2014 at 5:50pm
सुन्दर कुंडलिया छंद रचना के लिए हार्दिक बधाई............

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