For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कटी-पतंग

-----------------------

सतरंगी वो चूनर पहने

दूर बड़ी है

इतराती बलखाती इत-उत

घूम रही है उड़ती -फिरती

हवा का रुख देखे हो जाती

कितनों का मन हर के फिरती

'डोर' हमारे हाथ अभी है

मेरा इशारा ही काफी है

नाच रही है नचा रही है

सब को देखो छका रही है

प्रेम बहुत है मुझे तो उससे

जान भी जोखिम डाले फिरता

दूर देश में इत उत मै भी

नाले नदियां पर्वत घाटी

जुडी रही है बिन  भय के वो

मुड़ी नहीं है, अब तक तो वो

कितनी ये मजबूत 'डोर' है

कच्चा बंधन, पक्का बंधन

चाहत  कितनी प्रेम है कितना

कौन  संजोये मन से कितना

कितनी इसे अजीज मिली है

खुश -सुख बांधे 'डोर' मिली है

कुदरत ने बहुमूल्य रचा है

'दिल' को अभी अमूल्य रखा है

डर लगता है कट ना जाये

या छल बल से काटी जाए

कहीं सितारों पे ललचाये

'आकर्षण' ना खींचती जाए

'प्रेम' का नाजुक बंधन होता

टूटे ना 'गठ-बंधन' होता

होती गाँठ तो लहराती है

हाथ न अपने फिर आती है

कटी-पतंग बड़ी ही घातक

लुटी-लुटाई जाती घायल

हाथ कभी तो आ जाती है

कभी 'डोर' ही रह जाती है

यादों का दामन बस थामे

मन कुढ़ता,  ना लगे नयी में

जाने नयी भी कैसी होगी

कैसी 'डोर' उड़े वो कैसी ??

विधि-विधान ना जाने कोई

क्या पतंग क्या डोर - हो कोई 

रचना अद्भुत खेल है पल का

नहीं ठिकाना अगले कल का ..

===================

"मौलिक व अप्रकाशित" 

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५

६.००-६.३० पूर्वाह्न

४.३.२०१४

करतारपुर जालंधर पंजाब

Views: 539

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 22, 2014 at 9:17pm

प्रिय नीरज जी रचना आप के मन को छू सकी और आप ने सराहा अच्छा लगा आभार
भ्रमर ५

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 22, 2014 at 9:15pm

आदरणीय लक्ष्मण जी प्रोत्साहन हेतु बहुत बहुत आभार
भ्रमर ५

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 22, 2014 at 9:14pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी रचना की गहराई में जाने और अपनी सुन्दर प्रतिक्रिया नवाजने के लिए आभार
प्रेम में ऐसा होना तो सच में नहीं चाहिए लेकिन।
भ्रमर ५

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 22, 2014 at 9:12pm

प्रिय जितेंद्र जी आभार आप का प्रोत्साहन हेतु
भ्रमर ५

Comment by बृजेश नीरज on April 16, 2014 at 11:35pm

बहुत सुन्दर रचना! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 15, 2014 at 5:52pm

विधि-विधान ना जाने कोई

क्या पतंग क्या डोर - हो कोई 

रचना अद्भुत खेल है पल का

नहीं ठिकाना अगले कल का .. मन में असुरक्षा के भावों को पतंग डोर के माध्यम से प्रस्तुत | वाह ! बहुत बधाई  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 15, 2014 at 10:18am

नाजुक रिश्तों को लेकर एक असुरक्षा की भावना बड़ी सुन्दरता से शब्दबद्ध की है,मेरा तो ये कहना है की गठ्बंधन में यदि पवित्र प्रेमसिक्त  भावनाएं बंधी हैं तो ये  असुरक्षा होनी नहीं चाहिए एक दूसरे पर विश्वास ही इस बंधन को कायम रखता है.बहुत अच्छा लिखा आपने बहुत- बहुत बधाई.  

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 15, 2014 at 9:55am

आदरणीय सुरेन्द्र जी, बहुत सुंदर गीत प्रस्तुति. हार्दिक बधाई स्वीकारें

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 14, 2014 at 7:11pm

आदरणीया मीना जी रचना में नारी पुरुष के सम्बन्धो को आप ने गौर किया और सराहा सुन ख़ुशी हुयी
आभार
भ्रमर ५

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 14, 2014 at 7:10pm

आदरणीय गिरिराज भाई रिश्तों के नाजुक वन्धन को ये रचना दर्शा सकी और आप ने सराहा मन खुश हुआ
आभार
भ्रमर ५

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 149 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
26 minutes ago
SACHIN updated their profile
52 minutes ago
Usha Awasthi commented on Usha Awasthi's blog post मन नहीं है
" आदरणीय सुशील सरन जी,आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया प्राप्त कर प्रसन्नता हुई।  हार्दिक धन्यवाद…"
8 hours ago
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कुछ हो मत हो नेता दिख -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"वाह आदरणीय जी बहुत सुंदर और सार्थक प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Dr. Vijai Shanker's blog post सत्य और झूठ -- डॉ० विजय शंकर
"वाह आदरणीय जी सच और झूठ की बहुत सुंदर व्याख्या की है आपने ।हार्दिक बधाई सर"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Chetan Prakash's blog post एक ताज़ा गज़ल
"वाह आदरणीय जी बहुत ही खूबसूरत सृजन हुआ है, शेर दर शेर मुबारक कबूल करें सर"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Usha Awasthi's blog post मन नहीं है
"अन्तस भावों की सहज अभिव्यक्ति आदरणीया जी । हार्दिक बधाई"
9 hours ago
Usha Awasthi commented on Usha Awasthi's blog post मन नहीं है
"आदरणीय डा0 विजय शंकर जी,रचना अच्छी लगी, जानकर खुशी हुई। हार्दिक आभार आपका,सादर। "
18 hours ago
Dr. Vijai Shanker commented on Usha Awasthi's blog post मन नहीं है
"आदरणीय उषा अवस्थी जी , रचना अछी है। हाँ , यह भी कहा जाता है कि कभी कभी कुछ लिखना हम लोगों की विवशता…"
20 hours ago
Dr. Vijai Shanker commented on Dr. Vijai Shanker's blog post सत्य और झूठ -- डॉ० विजय शंकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आभार , सादर।"
20 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

मधुमालती छंद. . . .

मधुमालती छंद ....1डर कर कभी, रोना नहीं ।विश्वास को, खोना  नहीं ।तूफान   में, सोना  नहीं ।नफरत कभी ,…See More
yesterday
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-102 (विषय: आरंभ)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-102 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। इस बार…See More
yesterday

© 2023   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service