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अभी तो म्यान देखी है अभी तलवार देखोगे

१२२२    १२२२     १२२२    १२२२

अभी तो म्यान देखी है अभी तलवार देखोगे

हिरन के सींग देखे सींग की तुम मार  देखोगे 

 

बहुत खुश होते हो परदे के जिन अश्लील चित्रों पर

बहुत रोओगे जब घर पर यही बाज़ार देखोगे

 

जिस्म की मंडियों में डोलते हो बन के सौदागर

करोगे खुदकशी बेटी को जब लाचार देखोगे

 

नदी, नाले, तलैया-ताल यारों देखकर सँभलो

नहीं तो तुम सड़े पानी का पारावार देखोगे

 

अभी भाता बहुत है ये सफ़र पूरब से पश्चिम का

बहुत तडपोगे जब जीवन में हाहाकार देखोगे

 

अभी तुम खूब सजदे कर रहे पश्चिम की नागिन का

रहा ये हाल तो पश्चिम का फिर दरवार देखोगे

 

हज़ारों सांप अस्तीनी, छुपे हैं भेंडिये लाखों

अभी जयचंद जैसे कितने ही गद्दार देखोगे

 

हज़ारो पीढ़ियों पे अपनी था जिस नीम का साया

अभी उस पर तो क्या निज साँस पर अधिकार देखोगे

 

मौलिक व अप्रकाशित 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 27, 2014 at 4:07pm

आदरणीय आशुतोष भाई , बहुत लाजवाब ग़ज़ल कही है , हर शे र एक से बढ़ के एक हैं , किसी एक को आज नही चुन सकता ॥ पूरी ग़ज़ल के लिये हार्दिक बधाईयाँ ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 27, 2014 at 10:27am

वाह आदरणीय डॉ आशुतोष सर बहुत बढ़िया सारे अशआर शिल्प के लिहाज से प्रभावित करते हैं

नदी, नाले, तलैया-ताल यारों देखकर सँभलो
नहीं तो तुम सड़े पानी का पारावार देखोगे

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