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ग़ज़ल : सदा सच बोलता है जो कभी अफ़सर नहीं होता

बह्र : १२२२ १२२२ १२२२ १२२२

 

कहीं भी आसमाँ पे मील का पत्थर नहीं होता

भटक जाता परिंदा, गर ख़ुदा, रहबर नहीं होता

 

कहें कुछ भी किताबें, देश का हाकिम ही मालिक है

दमन की शक्ति जिसके पास हो, नौकर नहीं होता

 

बचा पाएँगी मच्छरदानियाँ मज़लूम को कैसे

यहाँ जो ख़ून पीता है महज़ मच्छर नहीं होता

 

मिलाकर झूठ में सच बोलना, देना जब इंटरव्यू

सदा सच बोलता है जो कभी अफ़सर नहीं होता

 

ये पीली पत्तियाँ, पत्ते हरे आने नहीं देतीं

अगर इनको गिराने के लिये पतझर नहीं होता

-------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on March 24, 2014 at 12:08am

बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है धर्मेन्द्र जी।बधाई स्वीकार करें!

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on March 23, 2014 at 4:31pm

बचा पाएँगी मच्छरदानियाँ मज़लूम को कैसे

यहाँ जो ख़ून पीता है महज़ मच्छर नहीं होता |   वाह वाह !

बढ़िया ग़ज़ल हुई है धर्मेन्द्र जी | बधाई !

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 23, 2014 at 2:38pm

अशआर पसंद करने के लिए तह-ए-दिल से शुक्रगुज़र हूँ बागी जी. यहाँ 'जब इन्टरव्यू' को `जबिन्टरव्यू' की तरह पढ़ा जाएगा जो मेरे विचार में अरूज़ के हिसाब से जायज़ है 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 23, 2014 at 2:35pm

तह-ए-दिल से शुक्रगुजार हूँ rajesh kumari जी 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 23, 2014 at 1:34pm
बहुत बहुत शुक्रिया वन्दना जी

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 23, 2014 at 12:18pm

//बचा पाएँगी मच्छरदानियाँ मज़लूम को कैसे
यहाँ जो ख़ून पीता है महज़ मच्छर नहीं होता//

आहा, बहुत ही खुबसूरत शेर कहा है भाई, बहुत पसंद आया।

मिलाकर झू/ठ में सच बो/लना, देना/ जब इंटरव्यू

इस मिसरे को एक बार देख लें भाई,

मिलाकर झूठ में सच और साक्षात्कार फिर देना ……… ऐसे बात बनेगी क्या ?

अच्छी ग़ज़ल हुई है, बधाई आदरणीय धर्मेन्द्र जी।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 23, 2014 at 9:22am

ये पीली पत्तियाँ, पत्ते हरे आने नहीं देतीं

अगर इनको गिराने के लिये पतझर नहीं होता-----वाह्ह्ह्हह ग़ज़ब का शेर ...पूर्ण सत्य एवं कटाक्ष भी 

शानदार ग़ज़ल के लिए दिल से बधाई 

Comment by vandana on March 23, 2014 at 7:08am

मिलाकर झूठ में सच बोलना, देना जब इंटरव्यू

सदा सच बोलता है जो कभी अफ़सर नहीं होता

 

ये पीली पत्तियाँ, पत्ते हरे आने नहीं देतीं

अगर इनको गिराने के लिये पतझर नहीं होता

बहुत सुन्दर ग़ज़ल आदरणीय 

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