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फ़क़त दो चार पल की बात है ये ( ग़ज़ल - गिरिराज भन्डारी )

1222     1222     122 

फ़क़त दो चार पल की बात है ये

हाँ, बस इक रात जैसी रात है ये

कबूतर, तुम यक़ीं करना समझ कर

कहूँ क्या? आदमी की जात है ये

 

रफ़ाक़त आप कैसे कह रहे हैं ?

असल में पीठ खाई घात है ये

 

ख़िरदमन्दी से थोड़ी सी अलग है

न समझोगे दिलों की बात है ये,

ख़िरदमन्दी - बुद्धिमानी

 

मेरी इस बेबसी को दो दुआयें

रफीकों से मिली सौगात है ये

 

जो लब खामोश,जोड़े हाथ हैं तो

समझ लो बिन लड़े ही मात है ये

*************************

 

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 18, 2014 at 10:40pm

आदरणीय शिज्जू भाई , ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति ने हमेशा मेरा उत्साह वर्धन किया ॥ आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 18, 2014 at 10:39pm

आदरणीय गुमनाम भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ॥

Comment by Gajendra shrotriya on March 18, 2014 at 10:20pm

आदरणीय श्री गिरिराज भंडारी  जी आपकी अनुभवी कलम से हमेशा कि तरह बेहतरीन अशआर निकले हैं ।
मेरी इस बेबसी को दो दुआयें
रफीकों से मिली सौगात है ये                                                                                                                                                           इस शेर के लिए विशेष रूप से बधाई स्वीकार करें ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 18, 2014 at 10:03pm

ख़िरदमन्दी से थोड़ी सी अलग है

ये दिल की बात है, ज़ज्बात है ये

वाह क्या बात है बहुत बढ़िया

 बहुत बहुत बधाई इस ग़ज़ल के लिये

Comment by gumnaam pithoragarhi on March 18, 2014 at 7:20pm

फ़क़त दो चार पल की बात है ये

हाँ, बस इक रात जैसी रात है ये

कबूतर, तुम यक़ीं करना समझ कर

कहूँ क्या? आदमी की जात है ये

khob hai sir ji wah wah ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

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