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कुंडलिया छंद-लक्ष्मण लडीवाला

 होली का तौहार ये, रंगों का तौहार,

प्रेम भाव बढ़ता रहे, माने सब आभार 

माने सब आभार, प्रकृति की छटा निराली 

मिटा कर भेद भाव, चखे प्रेम भरी प्याली

मित्रो से अनुरोध, बना रसियों की टोली 

टेसू का हो रंग, प्रेम से खेले होली  |

(मौलिक व् अप्रकाशित)

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 20, 2014 at 9:54am

छंद पसंद करते और उचित सुझाव देने हेतु हार्दिक बधाई श्री गिरिराज भंडारी जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 20, 2014 at 9:52am

ओबीओ में आपका स्वागात है | ओबीओ में ही छंद विधान का अवलोकन करे तो अच्छी जानकार हो जायेगी | कुंडलिया छंद (दोहा और रोला) में एक दोहा लिख कर दोहे की अंतिम पंक्ति (रोला) को दोहराते हुए दो रोले सहित कुल छ पंक्तियों का छंद है | इसमें रोले का समापन प्रथम पंक्ति के शब्द या शब्द समूह से करते है | सम्पूर्ण जानकारी हेतु छंद विधान के अंतर्गत देखना उचित होगा जहां समुचित शंकाओं का समाधान किया जा सकता है |

 


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Comment by गिरिराज भंडारी on March 17, 2014 at 7:44pm

आदरनीय लक्ष्मण भाई , सुन्दर भावों से पगी आपकी कुन्दलिया के लिये बधाई ॥ मिटा कर भेद भाव, चखे प्रेम भरी प्याली , इस पंक्ति मे गेयता बाधित लग रही है । मिटा भेद के भाव ,प्रेम की पी ले प्याली ,  चाहे तो ऐसा कर सकते हैं

Comment by Omprakash Kshatriya on March 17, 2014 at 4:08pm

महोदय कुंडलिया छंद के बारे में बताए . आभारी रहूँगा .

कृपया ध्यान दे...

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