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सार ललित छंद (कल्पना रामानी)

छन्न पकैया, छन्न पकैया, दिन कैसे ये आए,

देख आधुनिक कविताई को, छंद,गीत मुरझाए।

 

छन्न पकैया, छन्न पकैया, गर्दिश में हैं तारे,

रचना में कुछ भाव हो न हो, वाह, वाह के नारे।    

 

छन्न पकैया, छन्न पकैया, घटी काव्य की कीमत,

विद्वानों को वोट न मिलते, मूढ़ों को है बहुमत।

 

छन्न पकैया, छन्न पकैया, भ्रमित हुआ मन लखकर,

सुंदरतम की छाप लगी है, हर कविता संग्रह पर।

 

छन्न पकैया, छन्न पकैया, कविता किसे पढ़ाएँ,

पाठक भी अब यही सोचते, कुछ लिख, कवि कहलाएँ।

 

छन्न पकैया, छन्न पकैया, रचें किसलिए कविता,

रचना चाहे ‘खास’ न छपती, छपते ‘खास’ रचयिता।

 

छन्न पकैया, छन्न पकैया, अब जो ‘तुलसी’ होते,

देख तपस्या भंग छंद की, सौ-सौ आँसू रोते।

मौलिक व अप्रकाशित  

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Comment

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Comment by कल्पना रामानी on March 25, 2014 at 10:25pm

आदरणीय शिज्जु जी, आपको यह रचना पसंद आई, यह मेरे लिए सुखकर है। आपका हार्दिक धन्यवाद

Comment by कल्पना रामानी on March 25, 2014 at 10:23pm

आदरणीया प्राची जी, आपकी टिप्पणी से कुछ कुछ संतोष हुआ, कि जो कुछ मैंने महसूस किया है उसमें कुछ तो सार है। रचना पर आपकी उपस्थिति संतोष प्रदान करती है।आपका मन से धन्यवाद  

Comment by कल्पना रामानी on March 25, 2014 at 10:21pm

प्रिय सरिता जी, संजु जी, रचना की सराहना द्वारा प्रोत्साहित करने के लिए आपका  हार्दिक धन्यवाद। 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 24, 2014 at 11:07am

आ० कल्पना जी

काव्य संसार के कुछ आयामों को आपने जैसा देखा समझा वह छन्न पकिया के माध्यम से आपने सांझा किया.. आपका नजरिया जानना भला लगा

 

शुभकामनाएं


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 13, 2014 at 11:10am

आदरणीया कल्पना जी आपकी यह रचना काफी सधी हुई है और आपने बहुत खूबसूरती से अपनी बात कही है बहुत बहुत बधाई आपको इस रचना के लिये

Comment by Sarita Bhatia on March 13, 2014 at 11:08am

आदरणीय कल्पना दी हार्दिक बधाई सुन्दर प्रस्तुति पर 

Comment by sanju shabdita on March 13, 2014 at 10:54am

आ० कल्पना दी मुझे आपकी यह रचना बहुत ही रोचक ,सटीक एवं  मजेदार लगी ..यह उन लोगों के लिए भी सबक है जो बिना लिखे ही कवि या लेखक  बनना चाहते हैं .इस बेहतरीन रचना के लिए आपको कोटि-कोटि बधाई

Comment by कल्पना रामानी on March 13, 2014 at 10:25am

आदरणीय सौरभ जी, आपका लिखा हुआ हर शब्द ध्यान से पढ़ा और आत्मसात किया। आपका हार्दिक आभार।

नमन आपको और मंच को, ज्ञान यहीं सब पाया।

सार-छंद का सार 'कल्पना', पूर्ण समझ में आया। सादर  

Comment by कल्पना रामानी on March 13, 2014 at 10:22am

आदरणीया राजेश जी, कल्पना मिश्रा जी, शशि जी, आप सबकी सराहना पाकर हार्दिक प्रसन्नता हुई, आप सबका सादर धन्यवाद।

Comment by कल्पना रामानी on March 13, 2014 at 10:20am

आदरणीय अखिलेश जी,  विजय जी,  गिरिराज जी, लक्ष्मण प्रसाद जी,  मनोज जी, ओमप्रकाश जी, आप सबकी छंद पर इतनी सुंदर आत्मीय टिप्पणियाँ पाकर लगा  कि कुछ सार्थक कह सकी हूँ। आप सबका मन से  आभार। सादर   

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