2122/ 2122/ 2122/ 212
कातिलों के शह्र में अहले जिगर आते नहीं
भीड़ से होकर परे चहरे नज़र आते नहीं
मेरे चारों ओर किस्मत ने बना दी बाड़ सी
हाल ये है अब परिन्दे तक इधर आते नहीं
वक्त सा होने लगा है दोस्तों का अब मिजाज़
गर चले जायें तो वापस लौटकर आते नहीं
ज़ीस्त के कुछ रास्तों पे तन्हा चलना ठीक है
क्यूँकि अक्सर साथ अपने राहबर आते नहीं
नक्शे-माज़ी देखने को आते तो हैं रोज़-रोज़
खण्डहर में लोग रहने को मगर आते नही
कामयाबी की लिखी जाये जहाँ से दास्ताँ
याद लोगों को पुराने वो नगर आते नहीं
-मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय विजय जी आपका हार्दिक आभार
आदरणीया राजेश दीदी आपका बहुत बहुत शुक्रिया। आपके और मेरे विचार बहुत मिलते हैं जो मिसरा आपने सुझाया है मैंने पहले वही लिखा था लेकिन बाद में एक शेर और बना जिसमें "इधर" काफिया का प्रयोग हुआ इसलिये इस शेर में थोड़ा फेर बदल करना पड़ा।
आदरणीय नीरज जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया। अर्ध ''स" के पहले और बाद में दीर्घ मात्रायें हो तो आधे "स" की तक्ती स्वतंत्र ''स" यानि एक लघु मात्रा की तरह की जाती है इस तरह यदि "रस्ता" हो तो वज्न 22 होगा और "रास्ता" हो तो 212 हो जायेगा
वाह वाह शिज्जू भाई कमाल की ग़ज़ल लिखी है सभी शेर लाजबाब है इस शेर पर एक सलाह देना चाहती हूँ ---
हाल ये है अब परिन्दे भी उतर आते नहीं-----हाल ये है अब परिंदे तक इधर आते नहीं ---लिखे तो मिसरा स्पष्ट होगा
एक तो परिंदे भी करने से बात पहले से कनेक्टेड लगती है दूसरे उतर आते नहीं में उतर के बाद कर न होने से खटक रहा है
ये शेर इतना नायाब है तभी मुझसे रुका नहीं जा रहा और सलाह दे रही हूँ .यदि आपको स्वीकार्य हो ..इस शानदार ग़ज़ल पर तहे दिल से ढेरों बधाई.
वाह बहुत खूबसूरत ग़ज़ल.. ये दोस्तों , रास्तों में कितनी मात्राएँ होती है , इसकी गिनती कैसे करते हैं ? ये २१२ होते हैं या २२ ..?
आदरणीया मीना जी आपका हार्दिक आभार
आदरणीया वंदना जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय गिरिराज सर आपकी उपस्थिति सदैव हर्षित करती है आपका हार्दिक आभार
आदरणीय मयंक जी आपने मेरी रचना को मान दिया आपका बहुत बहुत शुक्रिया
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