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सत्य पिरो लूँ (नवगीत)......................डॉ० प्राची

अहसासों को

प्रज्ञ तुला पर कब तक तोलूँ

चुप रह जाऊँ

या अन्तः स्वर मुखरित बोलूँ

 

जटिल बहुत है

सत्य निरखना- 

नयन झरोखा रूढ़ि मढ़ा है,

यद्यपि भावों की भाषा में

स्वर आवृति को खूब पढ़ा है

 

प्रति-ध्वनियों के

गुंजन पर इतराती डोलूँ

 

प्राण पगा स्वर

स्वप्न धुरी पर

नित्य जहाँ अनुभाव प्रखर है

क्षणभंगुरता - सत्य टीसता

सम्मोहन की ठाँव, मगर है

 

भाव भूमि पर

आदि-अंत के तार टटोलूँ

 

श्वास-श्वास में

कण-कण जीवन

जी लेने की रख अभिलाषा,

अंतर्मन ही छद्म जिया यदि

जीवन की फिर क्या परिभाषा

 

निज संचय में

मणिक-मणिक सम सत्य पिरो लूँ

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by kalpna mishra bajpai on March 5, 2014 at 9:13pm

आदरणीया प्राची मैडम,

अति सुंदर भाव व शब्दों से सजी आप की रचना ने मुझे कुछ पल सोचने पर मजबूर कर दिया।

सह्रदय बधाई

सादर

Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on March 5, 2014 at 9:08pm

श्वास-श्वास में

कण-कण जीवन

जी लेने की रख अभिलाषा,

अंतर्मन ही छद्म जिया यदि

जीवन की क्या फिर परिभाषा.......और इसके बाद 

निज संचय में

मणिक-मणिक सम सत्य पिरो लूँ........अतीव सुन्दर..समग्र रचना..

बधाई हो आदरणीया 

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