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सत्य पिरो लूँ (नवगीत)......................डॉ० प्राची

अहसासों को

प्रज्ञ तुला पर कब तक तोलूँ

चुप रह जाऊँ

या अन्तः स्वर मुखरित बोलूँ

 

जटिल बहुत है

सत्य निरखना- 

नयन झरोखा रूढ़ि मढ़ा है,

यद्यपि भावों की भाषा में

स्वर आवृति को खूब पढ़ा है

 

प्रति-ध्वनियों के

गुंजन पर इतराती डोलूँ

 

प्राण पगा स्वर

स्वप्न धुरी पर

नित्य जहाँ अनुभाव प्रखर है

क्षणभंगुरता - सत्य टीसता

सम्मोहन की ठाँव, मगर है

 

भाव भूमि पर

आदि-अंत के तार टटोलूँ

 

श्वास-श्वास में

कण-कण जीवन

जी लेने की रख अभिलाषा,

अंतर्मन ही छद्म जिया यदि

जीवन की फिर क्या परिभाषा

 

निज संचय में

मणिक-मणिक सम सत्य पिरो लूँ

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 7, 2014 at 1:57pm

रचना पर आपकी उत्साहवर्धक सराहना के लिए आभारी हूँ आ० जितेन्द्र जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 7, 2014 at 1:56pm

आ० प्रदीप कुशवाहा जी 

आपको रचना में सन्निहित भाव पसंद आये यह जान मुझे संतोष हुआ 

सादर धन्यवाद 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 7, 2014 at 1:55pm

नवगीत की अंतर्धारा पर आपकी सराहना के लिए धन्यवाद आ० केवल प्रसाद जी 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 6, 2014 at 11:49pm

बहुत सुंदर , अनुपम रचना आदरणीया डा.प्राची जी. हार्दिक बधाई स्वीकारें

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 6, 2014 at 10:18pm

श्वास-श्वास में

कण-कण जीवन

जी लेने की रख अभिलाषा,

अंतर्मन ही छद्म जिया यदि

जीवन की फिर क्या परिभाषा

 

निज संचय में

मणिक-मणिक सम सत्य पिरो लूँ

शानदार भाव और प्रस्तुति

सादर बधाई आदरणीया जी 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 6, 2014 at 7:52pm

आ0 प्राची मैम जी,  अप्रतिम...! शब्द चयन, भाव व लय रस सभी तरह से अप्रतिम गीत। हार्दिक बधार्इ स्वीकारें।  सादर,


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 6, 2014 at 6:50pm

रचना को समय देने और सराहने के लिए आपकी आभारी हूँ आदरणीया अन्नपूर्णा बाजपेयी जी 

Comment by annapurna bajpai on March 6, 2014 at 3:45pm

बहुत खूब , आ0 प्राची जी इस अनुपम रचना कर्म के लिए आपको हार्दिक बधाई । 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 6, 2014 at 2:34pm

किसी भी अभिव्यक्ति की यह सफलता होती है यदि वो पाठक के मन मस्तिष्क में चिंतन मनन के कुछ बिंदु दे सके... इस नवगीत से आपको सोचने पर बाध्य करते कुछ तथ्य कथ्य मिले ..यही मेरे लिए संतोष की बात है 

हार्दिक धन्यवाद आ० कल्पना मिश्रा बाजपेयी जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 6, 2014 at 2:31pm

इस प्रस्तुति का कथ्य आपको सार्थक लगा और समुच्चय में रचना आपको पसंद आयी, यह मेरे प्रयास के प्रति मुझे आश्वस्त कर रहा है 

नवगीत पर आपकी सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद आ० मनोज सिंह जी 

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