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हर शख्स यहाँ का शौकीन बडा है

मिजाज मेरे शहर का रंगीन बडा है ।

हर मौसम यहाँ का बेहतरीन बडा है ।।

आंखो मे सुरमा मुहँ मे पान रचा है ।

हर शख्स यहाँ का शौकीन बडा है ।1।

शोखिया अदाये वो इठलाती जबानी ।

यहाँ हुस्नो शबाब नाजनीन बडा है ।2।

है झील का किनारा वो लहरो की मस्ती ।

हर नजारा यहाँ दिल नशीन बडा है ।3।

हरसू है बस प्यार मोहब्बत की बाते ।

नफरत  यहाँ जुर्म संगीन बडा है ।4।  

हो इक शहर ऐसा भी इस जहाँ मे कही ।

तेरा ये ख्बाब “बसंत” हँसीन बडा है  ।5।

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by बसंत नेमा on February 26, 2014 at 10:18am

आदरणीय ब्रजेश जी सादर नमन, धन्यबाद शुक्रिया आप ने रचना को अपना समय और आशीष दिया .... इसी मंच  और आप लोगो से  सीख रहा हू । और आप लोगो के सामने ला रहा हू आप लोगो का आशीष मिलता रहे ये ही कामना करता हू ...धन्यवाद . 

Comment by बसंत नेमा on February 26, 2014 at 10:15am

आदरणीय गिरीराज जी सादर प्रणाम ..... रचना को आप का आषीश मिला उसके मिल्ये बहुत बहुत शुक्रिया  ...  अभी गजल कहने का  प्रयास कर रहा हू . बस आप गुणी जनो का अषीश मिलता रहे ये ही आशा करता हू ..... 

Comment by बसंत नेमा on February 26, 2014 at 10:10am

आ0 शयाम जी बहुत बहुत धन्यबाद शुक्रिया .....

Comment by बृजेश नीरज on February 25, 2014 at 10:32pm

अच्छा प्रयास है! आपको हार्दिक बधाई!

ग़ज़ल की जानकारी देने वाले लेख इस मंच पर उपलब्ध हैं. उन्हें देख लें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 25, 2014 at 6:02pm

आदरनीय बसंत भाई , सुन्दर रचना के लिये आपको बधाई ॥ अगर आपने ग़ज़ल कही है तो सभी मिसरे एक ही बह्र मे नही लग रहे हैं ।बह्र का उल्लेख आपने नही किया है , अतः कुछ कहना मुश्किल है ॥

Comment by Shyam Narain Verma on February 24, 2014 at 4:59pm
बहुत सुन्दर गज़ल ...............

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