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राह के कांटें हुए बलवान भी

"राह  के  कांटें  हुए  बलवान  भी"

आप की खातिर है हाजिर जान भी।
हाथ  का  पंजा  हुआ  हैरान  भी।।


कोरे कागज का कमल खिलता नहीं,
आज कल भौंरे करें पहचान भी।


अब चुनावी दौर का मंजर यहां,
बढ़ रही है रैलियों की शान भी।


भुखमरी-बेकारी सिर चढ़ बोलती,
हर किसी रैली में जन वरदान भी।


खो गर्इ है शान-शौकत-आबरू,
बो रहे हैं लोभ-साजिश-धान भी।


अब भरोसा भी नहीं उस्ताद पर,
गिरगिटों के रंग में इंसान भी।


जिन्दगी का रास्ता मुशिकल हुआ,
राह  के  कांटें  हुए  बलवान  भी।।


के0पी0सत्यम-मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 1, 2014 at 12:00am

बहुत लाजवाब गजल कही आपने आदरणीय केवल जी, हार्दिक बधाई आपको

Comment by कल्पना रामानी on February 25, 2014 at 11:04pm

शानदार गजल कही है अपने आदरणीय केवलप्रसाद जी, हार्दिक बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 25, 2014 at 6:19pm

आदरनीय केवल भाई , वर्तमान पर बहुत सुन्दर गज़ल कही है , आपको बधाइयाँ ॥

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