मन बौराया
कंगना खनका
मन बौराया
ऐसा लगता फागुन आया ।
रूप चंपयी
पीत बसन
फैली खुशबू
ऐसा लगता
यंही कंही है चन्दन वन ।
पागल मन
उद्वेलित करने
अरे कौन चुपके से आया ?
पनघट पर
छम छम कैसा यह !
कौन वहाँ रह – रह बल खाता ?
मृगनयनी वह परीलोक की
या है वह –
सोलहवां सावन !
मन का संयम
टूटा जाये
देख देख यौवन गदराया ।
कंगना खनका
मन बौराया
ऐसा लगता फागुन आया ।
---- मौलिक एवं अप्रकाशित ---
Comment
आदरणीय ब्रह्मचारी जी मन को छू लेने वाली रचना ..इसे गुनगुनाते हुए पढने में बहुत आनद आया ..प्रबह्मयी इस रचना के लिए तहे दिल बधाई सादर
सुंदर रचना , बधाई आपको आदरणीय ब्रह्मचारी जी ।
अहा आनंद आ गया बहुत ही सुन्दर रचना,सुन्दर प्रवाह आदरणीय ,हार्दिक बधाई आपको //सादर
बहुत बढ़िया रचना आदरणीय ....... |
कंगना खनका
मन बौराया
ऐसा लगता फागुन आया ।----वाह ! बहुत खूब | सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई श्री ब्रह्मचारी जी
फाल्गुन के स्वागत में बहुत सुंदर रचना प्रस्तुत की आपने आदरणीय ब्रह्मचारी जी हार्दिक बधाई आपको
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