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1-विवशता

मुश्किल वक्त मैं उसकी मदद नहीं कर पाया

पता है क्यों?

वह डरे व् फसे जानवर की तरह खूँखार हो गया था//

२-लौट आया

मैं वहाँ से लौट तो आया 

लेकिन खुद को अधूरा छोड़कर//

३-विवादित विचार 

 

उनका सम्बन्ध इसलिए टूटा

क्यूंकि वे 

विवादित विचारों तक ही सिमटे रहे//

 

४-अकेलापन

बाज़ार के अकेलेपन से इतना ऊब गया हूँ कि

अपना ज्यादा से ज्यादा समय खुद के साथ बिताता हूँ//

५-शेष

 मृत सपने

सूनी रातों का बूढ़ा कंकाल

धूल से पटी तस्वीरें

तुम्हे देने के लिए बस इतना ही बचा है 

******************************************

राम शिरोमणि पाठक"दीपक"

मौलिक/अप्रकाशित

Views: 491

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Comment by गिरिराज भंडारी on February 21, 2014 at 7:11pm

आदरणीय राम शिरोमणी भाई , क्षणिकाओं की रचना सुन्दर हुई हैं ! आपको बधाई ॥

मैं वहाँ से लौट तो आया 

लेकिन खुद को अधूरा छोड़कर//

 या , अधूरा लेकर , मुझे लेकर जादा अच्छा लग रहा है ,  या फिर आधा छोड़ कर  कहना सही लग रहा है , आप भी सोच के देखियेगा ॥

Comment by Sarita Bhatia on February 21, 2014 at 6:59pm

भाई बहुत भावपूर्ण क्षणिकाएँ ,बधाई आपको 

Comment by C.M.Upadhyay "Shoonya Akankshi" on February 21, 2014 at 5:47pm
क्षणिकाओं का भाव पक्ष सबल है । आपकी कविता का भविष्य उज्ज्वल है । GOD BLESS YOU.

 

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