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धुंए का गुबार : नीरज नीर

मेरी आँखों के सामने

रूका हुआ है

धुएं का एक गुबार 

जिस पर उगी है एक इबारत ,

जिसकी जड़ें

गहरी धंसी हैं

जमीन के अन्दर.

इसमें लिखा है

मेरे देश का भविष्य,

प्रतिफल , इतिहास से कुछ नहीं सीखने का .

उसमे उभर आयें हैं ,

कुछ चित्र,

जिसमे कंप्यूटर के की बोर्ड

चलाने वाले , मोटे चश्मे वाले

युवाओं को

खा जाता है,

एक पोसा हुआ भेड़िया,

लोकतंत्र को कर लेता है ,

अपनी मुठ्ठी में कैद

और फिर फूंक मारकर

उड़ा देता है उसे

राख की तरह

मानो यह कभी था ही नहीं.

बन जाता हैं स्वयं शहंशाह

टेलीविजन पर बहस करने वाले

बड़े-बड़े बुद्धिजीवि

भिड़ा रहे हैं जुगत ,

अपनी सुन्दर बीवियों और

बेटियों को छुपाने की

धुआं धीरे धीरे नीचे उतर कर

आ जाता है जमीन पर,

पत्थर के पटल पर

मोटे मोटे अच्छरों में दर्ज

हो जाता है इतिहास.

मैं अपनी आँखों के सामने

इतिहास बदलते देख रहा हूँ

नीरज कुमार नीर

मौलिक/अप्रकाशित

.....

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Comment

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Comment by Neeraj Neer on February 15, 2014 at 9:17am

आदरणीय laxman dhami साहब आपका आभार.

Comment by Neeraj Neer on February 15, 2014 at 9:16am

आ. अन्नपूर्ण बाजपाई जी जी आपका हार्दिक आभार.

Comment by Neeraj Neer on February 15, 2014 at 9:15am

आदरणीया मीना पाठक जी आभार आपका 

Comment by Neeraj Neer on February 15, 2014 at 9:15am

आपका हार्दिक आभार आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी ..

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 15, 2014 at 8:50am

बहुत सुंदर रचना आदरणीय नीरज जी, हार्दिक बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on February 15, 2014 at 7:22am

बहुत बढ़िया रचना आदरणीय नीरज जी बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by vandana on February 15, 2014 at 5:55am
चिंतनीय है यह वर्तमान जो इतिहास की कालिख के रूप में धुँए सा मंडरा रहा है ..लिखा जा रहा है |
बहुत सुन्दर रचना आदरणीय नीरज जी
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 14, 2014 at 11:09am

आदरणीय नीरज भाई, सुंदर रचना हेतु बधाई स्वीकारें ।

Comment by annapurna bajpai on February 13, 2014 at 7:36pm

आदरणीय नीरज जी बहुत सुंदर रचना हेतु बधाई स्वीकारें । 

Comment by Meena Pathak on February 13, 2014 at 6:48pm

बहुत सुन्दर रचना .. बधाई आप को 

कृपया ध्यान दे...

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