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दोहा...........पूजा सामाग्री का औचित्य

दोहा...........पूजा सामाग्री का औचित्य

रोली पानी मिल कहें, हम से है संसार।
सूर्य सुधा सी भाल पर, सोहे तेज अपार।।1

चन्दन से मस्तक हुआ, शीतल ज्ञान सुगन्ध।
जीव सकल संसार से, जोड़े मृदु सम्बन्ध।।2

अक्षत है धन धान्य का, चित परिचित व्यवहार।
माथे लग कर भाग्य है, द्वार लगे भण्डार।।3

हरी दूब कोमल बड़ी, ज्यों नव वधू समान।
सम्बन्धों को जोड़ कर, रखती कुल की शान।।4

हल्दी सेहत मन्द है, करती रोग-निरोग।
त्वचा खिले लग देह पर, वैवाहिक संयोग।।5

कच्चा धागा प्रेम का, धरे रक्ष का भाव।
बांध कलार्इ पर रखें, शदियों तक सम भाव।।6

दूध दही घी शहद गुड़, तुलसी पत्र विधान।
पंचामृत नित बांटना, गंगा नीर समान।।7

इलायची औ लौंग से, कटे मानसिक रोग।
सेनुर मन संयम करे, यश श्रध्दा का योग।।8

जीव देव के मध्य में, नहीं अहम का भाव।
मेरा जो, वह आपका, मन में बढ़े प्रभाव।।9

जो तेरा मेरा नहीं, मिले मुझे वह भाग्य।
भाग्य अंश भी दान कर, प्राप्त करूं सौभाग्य।।10

के0पी0सत्यम-मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 5, 2014 at 7:09pm

आ0 सौरभ सर जी,  सादर प्रणाम!  आवश्यक बिन्दुओं पर आपका अतिमहत्वपूर्ण मार्गदर्शन पाकर मैं कृत्य कृत्य हुआ। आपका हार्दिक आभार। सादर,


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 4, 2014 at 1:39pm

भाई केवल प्रसादजी, आपके इन दोहों को देख-पढ़ कर मैं आनन्दातिरेक में हूँ और हृदय की अतल गहराइयों से आपको बार-बार बधाइयाँ दे रहा हूँ. आपका प्रयास कथ्य और तथ्य दोनों से समृद्ध है. आप वाकई अपनी कई रचनाओं से चकित कर देते हैं. यह प्रस्तुति भी उन्हीं चमत्कारी रचनाओं में से है.

हाँ, इनमें से कुछ दोहों को तनिक और घुमाव देना चाहता हूँ. विश्वास है आप अन्यथा नहीं लेंगे -

हल्दी सेहत मन्द है, करती रोग-निरोग।  .... रोग और निरोग के मध्य हाइफन न लगायें .. वैसे देह निरोग अधिक उचित होगा
त्वचा खिले लग देह पर, वैवाहिक संयोग।।5 ....


कच्चा धागा प्रेम का, धरे रक्ष का भाव।
बांध कलार्इ पर रखें, शदियों तक सम भाव।।6....   सदियों सही शब्द होगा

दूध दही घी शहद गुड़, तुलसी पत्र विधान।.............. दूध दही घी गुड़ शहद  कीजिये न.
पंचामृत नित बांटना, गंगा नीर समान।।7

इलायची औ लौंग से, कटे मानसिक रोग।................. कटे को मिटे होने से भाव सार्थकता अधिक हो जायेगी.
सेनुर मन संयम करे, यश श्रध्दा का योग।।8............. सही शब्द श्रद्धा है

जीव देव के मध्य में, नहीं अहम का भाव।............  नहीं अहम का ताव  ..हो तो अर्थ और मुखर होगा.
मेरा जो, वह आपका, मन में बढ़े प्रभाव।।9.........  यही नमन का भाव .. ऐसा करने से नमन के भाव और इसकी प्रक्रिया को भी छंद मिल जायेगा

अन्य दोहे अत्यंत सार्थक और संग्रहणीय हैं
ऐसा ही प्रयास करें ..
हार्दिक आभार

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 20, 2014 at 8:38pm

आ0 अन्नपूर्णा जी, आशुतोंष भार्इजी व जितेन्द्र भार्इजी आप सभी बहुत बहुत आभार।  सादर,

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 14, 2014 at 7:56pm

दूध दही घी शहद गुड़, तुलसी पत्र विधान।
पंचामृत नित बांटना, गंगा नीर समान।।7

इलायची औ लौंग से, कटे मानसिक रोग।
सेनुर मन संयम करे, यश श्रध्दा का योग।।8...आदरणीय केवल जी ..सभी दोहे सन्देश परक पर इन दो दोहों में दी गयी जानकारी अत्यंत कम की है ..सादर बधाई के साथ 

Comment by annapurna bajpai on February 13, 2014 at 8:11pm

बहुत बढ़िया दोहे ,बधाई आपको आ0 केवल भाई जी । 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 12, 2014 at 11:47pm

एक से बढ़कर एक सुंदर सात्विक दोहे, हार्दिक बधाई आदरणीय केवल जी

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 12, 2014 at 7:38pm

आ0 श्याम नारायण भार्इ जी,   सादर प्रणाम!  आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका बहुत बहुत हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 12, 2014 at 7:38pm

आ0  सरिता जी,   सादर प्रणाम!  आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका बहुत बहुत हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 12, 2014 at 7:38pm

आ0 कुन्ती जी,   सादर प्रणाम!  आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका बहुत बहुत हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by Shyam Narain Verma on February 12, 2014 at 4:54pm
बहुत सुन्दर दोहे आदरणीय  । हार्दिक बधाई आपको .............

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