एक पुरानी रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ ,इस रचना का जन्म उस समय हुआ जब कारगिल में युद्ध चल रहा था |
" एक कवि की पाती वीर जवानों के नाम "
देश के वीर जवानों प्यारे , मेरी पाती नाम तुम्हारे |
नहीं पहुँचती कलाम ये मेरी , वहाँ खड़ी बन्दूक तुम्हारी ||
नहीं लिखी है ये शाही से , लिखी गई है जिगर लहू से |
जमी हमारी है ये थाती , हो इस दीपक की तुम बाती ||
देश के दुश्मन आए तो , खून उनका तुम बहा देना |
गोली आए दुश्मन की तो , छाती मेरी भी ले लेना ||
कतरा-कतरा अपने रक्त का , देश की खातिर तुमको दूँगा |
इस पाक जमी के इक-इक कण का,मैं हिंसाब तुम्हीं से लूँगा ||
कारगिल है नहीं ख़तरे में , न ख़तरे में है कश्मीर |
देश की अस्मत है ख़तरे में , ये समझलो प्यारे वीर ||
इज़्ज़त सोपी हाथ तुम्हारे ,रक्षा करना वीर हमारे |
मोत की हो अगर बहारें , पाक करना उसके सहारे ||
उन अमर शहीदों को है , जो हुए कुर्बाने वतन |
उनको तन-मन अर्पित करके ,सत-सत मेरा हो नमन ||
नहीं है मेरी किस्मत एसी , यह अमर पद मैं भी पाऊँ |
अपने दिल के ये अरमान , पाती से तुम तक पहुँच्ौऊँ ||
मौलिक व अप्रकाशित
चौथमल जैन
Comment
आदरणीय चौथ माल जैन जी बहुत सुंदर देश भक्ति मे डूबी रचना के लिए आपको बधाई ।
आदरणीय देशभक्ति में डूबी इस रचना के लिए तहे दिल बधाई सादर
देशभक्ति के भाव से सजी रचना हेतु सादर बधाई |
आदरणीय जैन जी , देश भक्ति से पगी आपकी सुन्दर , भाव पूर्ण रचना के लिये आपको बहुत बधाई ॥
आद रणीय चौथमलजी, आपके इस जज्बा को नमन । आपने कवि समुदाय की ओर से हमारे जवानो का संबल बढाया । साधुवाद
ऐसे मै शिल्प का कोई विशेष जानकार नही हू, किंतु शिल्पगत अधूरा पन लग रहा है । ऐसे इसे चौपाई छंद सुंदर सहेजा जा सकता है, अन्यथ न ले सादर
शानदार रचना आदरणीय बहुत२ बधाई .... |
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